पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१०१

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आल्हखण्ड । ६६ चम् चम् चम् चम् खड्गचमकें खट् पट्खट् पद रहीं मचाय ६० रन् रन रन् रन फिरें योगिनी बम् वम् वम्ब बम्बको गाय ॥ सन् सन् सन् सन् वायू सनक मन् मन् मन्न मन्न मन्नायँ ६१ मारु मारु करि तुरही बाले बालै हाव हाव करनाल ॥ सुनि सुनि ववके बहु क्षत्रीगण बहुतक जूझिगये नरपाल ६२ बहुतक करहैं रण सरिता में नदिया वही स्क्रके धार॥ मुंडन केरे मुड़चौरा मे औरंडन के लगे पहार ६३ परी लहाशें जो हाथिन की तिनका नदी किनारा मान ॥ परे बछेड़ा उँटनी तिनपर तिनसों नदीकगारा जान ६४ जैसे नदिया डोंगिया सोहैं तैसे स्वहैं नरनकी देह ॥ जैसे नदिया सावन बाई बसें बहुत गरजिकै मेह ६५ तैसे डोंगिया नरदेही में नेही जौन सनेहीं जीय॥ काक केक तिन ऊपर बेठे फारें जियत नरनके हीय ६६ छूरी जानो तुम मछलिनको कछुवा मनो दाल दिखराय॥ नची योगनी त्यहि सरिता में तारी भूतन दीन बजाय ६७ बड़ी लड़ाई भै बबुरीवन हमरे बूत कही ना जाय ॥ जो हम वाँध ह्याँ रूपक सब गाये उमर पार लैजाय ६८ करिया ऊदन के मुर्चा माँ औ परिरहा रामते काम ।। बड़ा लड़ेया माड़ो वाला ठाकुर जबर्दस्त सरनाम ६६ करिया बोला वहि समया में गर्मीई हांक करत ललकार ।। तुम टरिजावो म्बरे सम्मुखते ठाकुर उदयसिंह सरदार ७० वाप तुम्हारे को हमही ने कोल्हू डारा रहे पिराय॥ तेसे मारों तलवारी सो मानो कही बनाफरराय ७१ मुनिक बातें ये करिया की करिया भये उदयसिंहराय ।।