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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१०४

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माड़ोका युद्ध। ९९

खैंचि सिरोही ली कम्मर से औ मलखे पर दई चलाय ९४
वार बचायो मलखाने ने करिया निकट पहूँच्यो जाय॥
ढ़ालकि औझरि मलखे मारा तब गिरपरा करिङ्गाराय ९५
घोड़ा पपीहा मलखे लीन्ह्यो औ क्षत्रिनते कह्यों सुनाय॥
मारो मारो ओ रजपूतो तौ मिलिजाय बापका दायँ ९६
सुनिकैं बातैं मलखाने की ज्वानन खूब कीन घमसान॥
रङ्गा बङ्गा शहाबाद के साथ म आये जौन पठान ९७
ते द्वउ मारैं दिशि करिया के रणमाँ बड़े लड़ैया ज्वान॥
तिनके मुर्चा पर देवा रहै ठाकुर मैनपुरी चौहान ९८
सो ललकारै तहँ रंगा को औ बंगाको दियो हटाय॥
को गति बरणै तहँ देबा कै हमरे बूत कही ना जाय ६६
बड़ा लड़या रंगा रंगी जंगी खैंचि लीन तलवार॥
ऐंचिकै मारा सो देवा को देबा लीन ढालपर वार १००
औ ललकारा फिरि रंगा को रंगा खबरदार ह्वैजाय॥
खैंचि सिरोही देबा मारा रंगा गिरा भरहराखाय १०१
रंगा मरिगा जब मुर्चा पर बंगा चला तड़ाका धाय॥
नंगी लीन्हें तलवारी को देबा पास पहूँचा आय १०२
सँभरिकै बैठो अब घोड़ापर तुम्हरो काल गयो नियराय॥
यह कहि मारा तलवारी को बखतर काटि पार ह्वै जाय १०३
बचा दुलरुवा भीषमवाला ज्यहिका राखिलीन भगवान॥
खैंचि सिरोही ली कम्मर ते औ हनिदियो बंगपरज्वान१०४
बंगा जूझा रणखेतन में तब जरिमरा करिङ्गाराय॥
औ ललकारा रजपूतन को हमरे सुनो सिपाहिउ भाय १०५
नाय न पावैं मुहबे वाले इनकी कटा लेउ करवाय॥