पिंशन देबे सब शूरन को दुहरी तलव देव करवाय १०६
सुनिकै बातैं ये करिया की ठाकुर मोहवे का सरदार॥
रिसहा ह्वैकै मलखाने तब गरूई हांक दीन ललकार १०७
जान न पावैं माड़ो वाले औ रजपूतो बात बनाउ।
देव जगीरैं हम मुहवे माँ बैठे तीनि शाखिलों खाउ १०८
सुनि सुनि बातैं सरदारन की खुब लरिमरे सिपाही ज्वान॥
लालच लाग्यो अति रुपियाका सम्मुख लोहा लगे चबान १०९
सवैया ॥
सूमन को धन प्यार भलीविधि शूरन को धन नेक न भावै।
शूर शिरोमणि भक्तनको धन प्रान द्वऊन को मोह न आवै॥
सांच विभीषण की कहिये रहिये नहिं मौन यही मन भावे।
प्रान धनौपर आनपरी ललिते तजिशान स्वई दिग आये ११०
कौन गुमान करी अपने मन मान अमान लिये दुख पावै।
मान वही रधुनाथ मिलैं नतु है अपमान यही कहि आवै॥
वार के साथ बचै नहिं एक बिवेक से नेक यही मन भावै।
गावै अमान न मानचहै ललिते रघुनाथ स्वई जन पावै १११
शूर सिपाही ईजतिवाले बोले द्वऊ दिशाके ज्वान॥
काह बखानत महराजा हौ यहनहिंसुनाचहैंमकान ११२
देही नेही नरगेही के पाल्यो सदा द्रब्यसों प्रान॥
अब भय आई नृपदेही में नेही नहीं हमारे प्रान ११३
- काम १ क्रोध २ लोभ ३ मोह ४ इन चारोंकी प्रबलता में एक देउ
नहीं बचसक्ती॥