पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१०५

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५२ आल्ह खण्ड। १०० पिंशन देवे सत्र शूरन को दुहरी तलव देव करवाय १०६ मुनिकै बातें ये करिया की ठाकुर मोहवे का सरदार ॥ रिसहा कैक मलखाने तब गई हांक दीन ललकार १०७ जान न पाएँ माड़ो वाले प्रो रजपूतो बात बनाउ । देव जगी हम मुहवे माँ वैठे तीनि शाखिलो खाउ १०८ सुनि सुनि वार्तं सरदारन की खुब लरिमरे सिपाही ज्वान ।। लालच लाग्यो अति रुपियाका सम्मुख लोहा लगे चबान १०६ सवैया ॥ सूमन को धन प्यार भलीविधि शूरन को धन नेक न भावे । शूर शिरोमणि भक्तनको धन प्रान बऊन को मोह न आवै ।। सांच विभीषण की कहिये रहिये नहिं मौन यही मन भावे । प्रान धनौपर आनपरी ललिते तजिशान स्वई दिग आये ११० कौन गुमान करी अपने मन मान अमान लिये दुख पावै । मान वही रधुनाथ मिलें नतु है अपमान यही कहि आवै ।। वार के साथ बचै नहिं एक विवेक से नेक यही मन भावे । गावै अमान न मानचहै ललिते रघुनाथ स्वई जन पावै १११ शूर सिपाही ईजतिवाले वोले इऊ दिशाके ज्वान॥ काह बखानत महराजा हो यहनहिंसुनाच,हमकान ११२ देही नेही नरगेही के पाल्यो सदा द्रव्यसों पान ।। अब भय आई नृपदेही में नेही नहीं हमारे प्रान ११३ ® काम १ क्रोध २ लोग ३ मोह ४ इन चारोंकी प्रथलता में एक दे। नहीं बचसक्ती ॥