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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१०७

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आल्हखण्ड। १०२

सुनिकै बातैं ये सय्यद की बोला उदयसिंह सरदार॥
आठमहीना कहि आये त्यन त्यहिते ह्वैगै बहुत अबार १२५
यहु शिर पठवो तुम मोहबे को दादा मानो कही हमार॥
हार लयआयो यहु मल्हना को जामें मिलै जाय इउ हार १२७
सुनिकै बातैं ये ऊदन की रूपन बारी लीन बुलाय॥
करिया ठाकुर को शिर लैकै आल्हा मोहबे दीन पठाय १२८
पूरि तरंग यहाँ सों ह्वैगै शारद तुही लगावै पार॥
डगमग नैया भवसागर में माता तुही निवाहनहार १२९
पार को पावै यहु आल्हाकहि थाल्हा जौन शरमनक्यार॥
शारदमाता ज्यहि जिह्वा में ताको खेय लगावैं पार १३०
वन्दनकरिके तिन शारद को ह्याँते करों तरँग को अन्त॥
सुनैं सुनावैं हरिगुण गावैं ललिते स्वई जगतमें सन्त १३१

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबूप्रयागनारा-
यणजीकीआज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपँड़रीकलांनिवासिमिश्रबंशोद्भवबुध
कृपाशंकरसूनुपं॰ ललिताप्रसादकृतकारिबाबघोनामचतुर्थस्तरंगः ॥४॥


सवैया॥

कूप तड़ाग औ मंदिर सुन्दर वृक्ष चिलौलहुके बहु राजैं।
मंदिर में शिवमूरति थापित देखतही दुख दारिद भाजैं॥
जानतहौं नहिं कौनहिंथाप्यो भूरिदिनोंसे तहां सो बिराजैं।
ग्रामक नाम बड़ी पड़री तहँ मंदिर में सगरेश्वर गाजैं १

सुमिरन॥

बेनु बाँसुरी अब बाजै ना नाकहुँ फिरैं गलिनमें श्याम॥
रहिगै ठकुरी ना दशरथ की ना रहिगयो धनुर्धर राम १