सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५५
माड़ोका युद्ध। १०३

पैदा होई सो मरजाई आई कछू नहीं फिर काम॥
भलो बुरो जो जग में करि है सोई बना रही नितनाम २
परमसनेही रघुनन्दन बिन नेही और जगत में कौन॥
तिनहित देही नरगेही तज जावै राम भौनको तौन ३
आलस देही नरगही तज सो यमपुरी पहूँचै जाय॥
पार न जावै बैतरणी के धरि धरि चील्हगीधसबखायँ ४
छूटि सुमिरनी गै देवनकै शाका सुनो शूरमन क्यार॥
कल्हू पिरायी नृप जम्बै को मकुर उदयसिंह सरदार ५

अथ कथाप्रसंग ॥


माहिल चलिभे ह्याँ उरई ते लिल्ली घोड़ीपर असवार॥
तिकतिक हाँकै त्यहि घोड़ीका एँड़ी करैं भड़ाभड़ मार १
थोड़ी देरी के अरसा माँ माहिल अटे मोहोबे आय॥
पहिले मिलिकै परिमालिकको मल्हना भवन पहूँचे जाय २
दीख्यो मल्हना जब माहिलको उठिकै बड़ा कीन सतकार॥
पूंछन लागी फिरि भैयासों राजा उरई के सरदार ३
आल्हा ऊदन मलखे सुलखे बारेसे स्यये चारिहू भाय॥
आठ महीना का कहिकै गे आयो एक साल नगच्याय ४
खबरि जो पाई कहुँ भाई हो हमको बेगि देउ बतलाय॥
सुनिकै बातैं ये मल्हना की माहिल बोले बचन बनाय ५
मरे बनाफरगे माड़ो में खुपरी टँगी बरगदे डार॥
सुनिकै बातैं ये माहिल की मल्हना रोई छाँड़ि डिंडकार ६
स्वने कै लंका म्बरि जरिबरिगै अबधों कौन लगाई पार॥
माहिल बोला फिरि बहिनीसों कीन्हे चुगुलिन का ब्यौपार ७
अब बुलवावो तुम पंडित को सूतक साइति करै बिचार॥