सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५८
आल्हखण्ड। १०६

चली बिजैसिनि झारखण्डते पहुँची रङ्गमहल में आय ३२
जितने जादू बिजमाॅ डारे सो लश्कर ते लये उतार॥
उतरी जादू जब लश्कर ते चेते सबै शूर सरदार ३३
आल्हा बोले तब मलखेते नहिं लखिपरै लहुरवा भाय॥
सुनिकै बातैं मलखे बोले देवा शकुनदेव बतलाय ३४
लैकै पोथी ज्योतिष वाली देवा हाल गयो सब गाय॥
गुरू झिलमिलाकी मढ़ियामाँ बांधा तहां लहुरवा भाय ३५
सुनिकै बातैं ये देवा की आल्हा बहुत गयो घबड़ाय॥
देवा बोला फिरि मलखेते गानो कही बनाफरराय ३६
बाना छोरो रजपूती का अँगमाँ लेवो भस्म लगाय॥
योगी बनिकै हम तुम जावैं तौ सबकाम सिद्ध ह्वैजायँ ३७
बातैं सुनिकैं ये देबा की योगी बने वीर मुलखान॥
तुरतै चलिभे झारखण्ड को पहुँचे तहाॅ दूनहू ज्वान ३८
गुरूझिलमिलाकी मढ़ियाढिग गावैं तान वीर मलखान॥
बाजै डमरू भल देबाकै सोपरिगईभनक त्यहिकान ३९
गुरू झिलमिला बाहर आयो योगी लखा तहाँ दुइ ज्वान॥
हाथ पकरिकै लै मढ़िया में बाबा बड़ा कीन सनमान ४०
बारे योगी हम दोउभाई ऐसा कह्यो वीर मलखान॥
अब हम जावें हरद्वार को चाहे कळू नहीं सनमान ४१
रमता योगी बहता पानी ये नहिं करैं कतों विश्राम॥
नहिं अभिलाषा क्यहू बातकी केवल जपैं रामको नाम ४२
सुनिकै बातैं ये योगी की बोलातुरतझिलमिला ज्वान॥
जो कल्लु मांगो सो कछु पावो हमरे बचन करो परमान ४३
सुनिकै बातैं ये बाबा की बोले तुरत बनाफरराय॥