पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/११३

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आल्ह खण्ड । १०८ चहला उठिरहि तहँ चरविनकी औ बहिचली रक्तकी धार ५६ शूर सिपाही माडोवाले नंगी हाथ लिये तलवार । चले सिरोही तहँ सँभरा भरि ऊना चले विलाइतिक्यार ५७ दूनों फौजें यकमिल द्वैगइँ वीरन रहे वीर ललकार ॥ दुइ दुइ तुरंन के वधवैया ईसब डारि भागि तलवार ५८ जितने कायर रहँ फौजन में तर लोथिन के रहे लुकाय ॥ हेला आवै जब हाथिन का तब विनमरे मौत द्वैजाय ५६ देवा बोले तब ऊदनते हमरे सुनो वनाफरराय ।। भागे क्षत्रिन को मारयो ना नहिं सब क्षत्री धर्मनशाय ६० फूल केतकी का सूंब्यो ना जवलग फुलवामिलै गुलाब ॥ दाया राख्यो दिज देवन में ऊदन यही धर्म की आव ६१ घोड़ी कबुतरी का चढवैया मलाचे वड़ा लड़या ज्वान ।। बहुतन मारे तलवारी सों बहुतन लेय ढालसों प्रान ६२ को गति बरणे तहँ सय्यद की नाहर सिरगापर असवार । गुर्ज उठाये रणमाँ मटके पटके बड़े बड़े सरदार ६३ अली अली कहि सय्यद धावै रणमाँ गली गली लैजाय ॥ भली भली कहि आल्हा बोले रणमाँ थली थली थर्राय ६४ चली चली तहँ धरती डोले बोलें हली हली सब गाय ॥ कली कली जस सारंग सम्पुट तैसे डली डली मिलिजायँ ६५ को गति बरणै समरभूमि के हमरे बूत कही ना जाय ॥ राजा जम्वा के मुर्चा पर चीरिक धोती मारि लँगोटी कोउकोउ अंग विभूतिरमाय॥ कोउ रजपूत न रोक पायँ ६६ लोहुभरी माटी फिरि लेके रामानन्दी तिलक लगाय ६७ हमें न मारो ओ रजपूतो मतो जगन्नाथ को जायें ॥