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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/११४

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माड़ोका युद्ध। १०९

कोउकोउ ढालनको बचुकाकरि पीठिम डारिलीन भयखाय ६८
हम सौदागर हैं जयपुरके आये राजमहल में भाय॥
पहिले फाटक के ऊपरमाँ मुर्चा परा बरोबरि आय ६९
जिन्हैं पियारी रहैं घर तिरिया तिन रण डारिदीन तलवारि॥
हमैं न मारो हमैं न मारो दादा बापूकरैं गुहारि ७०
त्यही समैया त्यहि अवसरमाँ बोला तहाँ बीरमलखान॥
राजा जम्बाके मुर्चा पर ठहरे नहीं एकहू ज्वान ७१
सुनिकै बातैं ये मलखे की आल्हा हाथी दीन बढ़ाय॥
जम्बा केरे तहँ मुर्चामाँ पहुँचे तुरत बनाफरराय ७२
हाथी जानै भल आल्हा को यहु है देशराज को लाल॥
देशराज औ बच्छराज दोउ मेरो भलो कीन प्रतिपाल ७३
ज्ञान जानवर में जैसो है मानुष नहीं दशो में पांच॥
गर्भवती नारी के ऊपर फिरिनहिंचढ़ै जानवरसाँच ७४

(रागानुरागोपदेशोपकारक सवैया॥)


साँच रह्यो मन ज्ञान बिरागमें याँच रह्यो कर्त्ता कर्त्तारे॥
आनि बिपत्तिपरी शिरऊपर राखु हरी भर्त्ता भर्त्तारे॥
जीव गुहारपुकार करी जब आय हरी कर्त्ता कर्त्तारे॥
साँच न याँच करै ललिते तब नाहिं हरी भर्त्ता भर्त्तारे ७५



तैसो हाथी तहँ आल्हा को साँचो जाति पाँतिमें साँच॥
मूंडि लपेटे जंजीरन को मारै हेरि हेरि दश पाँच ७६
विकट लड़ाई हाथी कीन्ह्यो करणी रही समर में नाच॥
जम्बा बोला तब आल्हा ते मानो बचन हमारे साँच ७७
तुम फिरिजावो म्बरे मुहराते हमरे बचन करो परमान॥