पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/११५

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आल्हखण्ड । ११० अवै न आल्हा कछु विगरा है नाकछु बहुतभयो नुकसान७८ पुत्र हमारे मरि चारो गे हमरे वरै करेजे आग॥ जो भाग जावो अब मोहवे को होवे बड़ी तुम्हारी भाग ७६ उठिकै हौदाते आल्हारण आल्हारण बोले दूनों भुजा उठाय॥ रहे अधर्मी ना कौनो युग रावण कौरव के समुदाय ८० काह हकीकति त्वरि जम्बाहै कोल्हू डारे बाप पिराय ।। ॥ लरिका बिगरे अब ऊदन हैं जियते कोल्हू डरें पिसाय ८१ सँभरिकै बैठे अब हौदापर जम्बा खबरदार लैजाय ॥ मारु सिरोही म्बरि छाती माँ कैसी लाये शान धराय ८२ हमरो वाना मरदाना है यह हम ठीक दीन बतलाय॥ उठे सिरोही जो रण हमरी तौफिरि कौन पर दिखराय८३ इतना सुनिक नृप जम्बा ने कम्मर खचि लीन तलवार । पेंचि तड़ाका फिरि मारा शिर आल्हा लीन दालपर वार ८४ आल्हा बोल्यो फिरि जम्बा ते दूसरि वार करो सरदार ॥ वैचि सिरोही ज़म्बा मारी आल्हा लीन ढालपर वार ८५ - कवों सिरोही जब बांधी ना मुर्गा खायगई तव धार ।। वार तीसरी अब तुम मारो राजा माड़ो के सरदार ८६ साँकरि दीन्ही पचशवदाको आल्हा बोले बचन सुनाय॥ हौदा गिरावे तुम जम्बा का हमरे निमक अदालैजाय ८७ खेंचि सिरोही दोउ हाथन सों जम्बा कीन तीसरी वार ।। दाल फाटिगे गैंडावाली बचिगाआल्हा परमजुझारस सॉकरि फेरी पचशब्दाने हौदा तुरतै दीन गिराय ।। आल्हा कूदे फिरि हौदाते पकखो नृप तुरतही आय ८६ चारो गये तहांपर आय॥ मलखे देवा सम्यद अदन