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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१२

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संयोगिनिस्वयम्बर।

लैकै माला संयोगिनि तहँ घूमत फिरै सखिन के साथ ।।
मन नहिं भावै कोउ राजा त्यहि जाको करै आपनो नाथ ७६
देखैं राजा संयोगिनि तहँ औ शिर नीचे लेयँ नवाय॥
माला डाले नहिं काहू के क्षत्री गये सबै शर्माय ७७
सोतो देखै पृथीराज को नहिं तहँ देखि परैं महराज॥
चकृत ह्वैकै चौगिर्दा ते देखनलागि छांड़िकै लाज ७८
जब नहिं देख्यो दिल्लीपतिको तब मन सोचि सोचि रहिजाय॥
काह विधाता कै मर्जी है जो नहिं अयो पिथौराराय ७९
क्वारी रहिवे हम दुनिया में, या फिरि ब्याहकरख तिनसाथ॥
त्यहिते तुमका हम ध्याइत है सुनिल्यो दीनबन्धु रघुनाथ ८०
जइस मनोरथ तुम सीताको पुरयो आप चराचर नाथ॥
तइस मनोरथ अब हमरो है ब्याही जायँ पिथौरा साथ ८१
त्वही गोसइयाँ दीनबन्धु है ओ दशरथ के राजकुमार॥
बेगि मिलावो दिल्लीपति को तब सब होवैं काज हमार ८२
चरण तुम्हारे जो मनलावै गावै राम राम श्री राम॥
सो फल पावै मनभावै जो पूरण होयँ तासु के काम ८३
यह सुनि राखा हम बिप्रन ते ताको सत्य करो भगवान॥
मूरति दीख्यो फिरि कपड़ाकी तामें करनलागि अनुमान८४
है यह मूरति पृथीराजकी मनमाँ ठीक लीन ठहराय॥
लैकै माला संयोगिनि सो मूरति गले दीन पहिराय ८५
देखि तमाशा सब राजा यह आशा छाँड़ि हृदयते दीन॥
बिदा मांगिकै महराजाते राजन गमन तहाँते कीन ८६
कूचके डंका बाजन लागे घूमन लागे लाल निशान॥
चलिमेराजा निज निज घरका करिकै शम्भुचरणको ध्यान ८७