पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१२२

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अथ पाल्हखण्ड॥ नैनागढ़की लड़ाई अथवा आल्हाका बिवाह ॥ सवैया।। दीनसहायक नाम तुम्हार सुना बहु ग्रन्थन में महराजा। है शबरीगजगीध अजामिल ते अजहूं जिहिकोयशवाजा॥ जो करणी सुमिरों इनकी तवहीं मन धैर्य लहै रघुराजा। दीन पुकारकरै ललिते प्रभु बेगि द्रवो हे गरीब नेवाजा ॥ सुमिरन॥ गयान कीन्हीजिनकलियुगमाँ काशिम घोड़ दान नहिंदीन। जन्मत बैरी जिन मारा ना नाहक जन्म जगत में लीन १ पूजा कीन्ही नहिं शम्भू की अक्षत चन्दन फूल चढ़ाय ।। फिरि गलमँदरी जिनबाजीना मुख ना बम्ब बम्ब गा छाय २ भसमरमायो नहिं देही माँ कबहुंन लीन सुमिरनी हाथ ।। सोचन लायक ते आरय हैं जिन नहिं कवों नवायोमाथ ३ को अस देवता रहे शम्भूसम जिनको पूज्यो रामउदार ।। वेद उपनिषदके ज्ञाता रहैं जिनबल भयो रावणाचार