पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१२३

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आल्हखण्ड। ११८ झूटि सुमिरनी गै देवन के शाका सुनो शूरमनक्यार॥ व्याह बखानों में आल्हाका होई तहाँ भयानक मार ५ भय कयामसंग ॥ नैनागढ़ का जो महराजा साजा सर्व भांति कर्तार॥ राजा इन्दर का बादानी औ नेपाली नाम उदार ? तिन घर कन्या इक पैदा भै सबबिधि रूपशीलगुणखान॥ पदिक विद्या सब जादूकी कछुदिनवाद भई फिरिवान २ संगसहेलिन के खेलति भय सुनवाँ कही तासुका नाम ॥ खेल लरिकई को जाहिर है लरिका ख्यले चारिहूयाम ३ खेलत खेलत फुलबगिया गइँ सब मिलि करें फुलनकी मार।। कटहर बड़हर त्यहि बगिया में कहुँ कहुँ फूलिरही कचनार ४ ४ उ सुगन्धैं कहुँ चन्दन की कतहूँ कदलिन खड़ी कतार ॥ गुम्मज सोहैं मोमशिरिन के कहुँ कहुँ फुली चमेलीडार ५ वेला फूले अलवेला कहूँ खिन्निन लता गई बहुछाय।। हर वहेरा साँखो विरम सीधे चले उपर को जायँ वरगद छैले हैं नीचे को फैले भूमि रहे नियराय ॥ जैसे सम्पति सज्जन पावें नीचे शीश झुकावत जायँ ७ शीशम जानो तुम नीचनको आधे सरग फरहरा खाय ।। चले कुल्हाड़ा जब नीचेते गिरिकै टूक टूक द्वैजाय ८ को गति वरणे तहँ अधमनके सोहैं करिल रूपते भाय॥ ताल तमालन के गिनतीना कदमन गई सघनता छाय फुली नेवारी अब अगस्त्य हैं आमनडार कैलिया बोल ॥ सोह अशोकन के विरवा मल तीनों तहाँ क्यारी डोल १० गुलर जामुन पाकर पीपर कोनन खड़े वृक्ष सरदार।। ६