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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१२४

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आल्हाका बिवाह। ११९

तार अपारन के बिरवा बहु कहुँ कहुँ खड़े वृक्ष कह्वार ११
टेसू फूले कहुँ सोहत हैं जैसे सोहैं लड़ैता ज्वान॥
रूप गुलावन को देखत खन फूलनछांड़िदीनअभिमान १२
कौन कनैरन को वर्णन कर चाँदनि चाँद सरिस गै छाय॥
फूल दुपहरी के भल सोहैं मोहैं मुनिन मनै अधिकाय १३
गेंदन केरे बहु बिरवा हैं अर्जुन बृक्ष परैं दिखराय॥
मेला लाग्यो नौरङ्गिन का हेला निंबुन का दर्शाय १४
ठेला भरि भरि अमरूतन का माली राजभवन को जाय॥
केवँड़ा केरी उठैं सुगन्धैं कहुँकहुँ नागबेलिगै छाय १५
ताही बगिया सुनवाँ खेलै मेलै गले सखिन के हाथ॥
सखियाँ बोलीं तहँ सुनवाँते तुम नित ख्यलोहमारेसाथ १६
पैर महावर पै तुम्हरे ना टिकुली नहीं बिराजै भाल॥
द्रव्य तुम्हारे का घर नाहीं जो नहिं ब्याहकरैं नरपाल १७
इतना कहिकै सब आलिनने औ करताली दीन बजाय॥
समय दुपहरी को जान्यो जब तब फिरि खेलबन्द ह्वैजाय १८
कीरति गावैं सब आल्हा की माड़ो लिहेनि बापका दायँ॥
धन्य बनाफर उदयसिंह हैं आल्हा केर लहुरवा भाय १९
ऐसी बातैं सखियाँ करतै अपने भवन पहुंचीं आय॥
ताही क्षणमें सुनवाँ मन में अपने ठीक लीन ठहराय २०
ब्याही जैबे आल्हा सँग में की मरिजाब जहरको खाय॥
छाय उदासी गै चिहरा में पूंछै बार बार तब माय २१
कौन रोगहै त्वरि देहीमाँ बेटी हाल देउ बतलाय॥
पीली ह्वैगे सब देही है औतनकाँपिकाँपिरहिजाय २२
को हितकारी है मातासम नाता बड़ा जगत केहिभाय॥