पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१२४

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आल्हाका विवाह । ११६ तार अपारन के विरवा बहु कहुँ कहुँ खड़े वृक्ष कतार ११ सू फूले कहुँ सोहत हैं जैसे सोहैं लडैता ज्वान ।। रूप गुलावन को देखत खन फूलनछांडिदीनअभिमान १२ कौन कनैरन को वर्णन कर चाँदनि चाँद सरिस गैबाय ।। फूल दुपहरी के भल सोहैं मोहैं मुनिन मनै अधिकाय १३ गेंदन केरे बहु बिरवा हैं अर्जुन वृक्ष पर दिखराय ।। मेला लाग्यो नौरङ्गिन का हेला निंबुन का दर्शाय १४ ठेला भरि भरि अमरूतन का माली राजभवन को जाय । केवड़ा केरी उठे सुगन्धैं कहुँकहुँ नागबेलिगै छाय १५ ताही बगिया सुनवाँ खेलै मेलै गले सखिन के हाथ ।। सखियाँ बोलीं तहँ सुनवाँते तुम नित ख्यलोहमारेसाथ १६ पैर महावर पै तुम्हरे ना टिकुली नहीं बिराजै भाल ॥ द्रव्य तुम्हारे का घर नाहीं जो नहिं ब्याहकरें नरपाल १७ इतना कहिकै सब आलिनने औ करताली दीन बजाय ॥ समय दुपहरी को जान्यो जब तब फिरि खेलबन्द लैजाय १८ कीरति गावे सब आल्हा की माड़ो लिहेनि बापका दायें । धन्य बनाफर उदयसिंह हैं आल्हा केर लहुरवा भाय १६ ऐसी बातें सखियाँ करते अपने भवन पहुंचीं आय ॥ ताही क्षणमें सुनवाँ मन में अपने ठीक लीन ठहराय २० व्याही जैबे आल्हा सँग में की मरिजाब जहरको खाय ।। छाय उदासी गै चिहरा में पूंछ बार बार तब माय २१ कौन रोगहै त्वरि देहीमाँ बेटी हाल देउ बतलाय ॥ पीली द्वैगै सब देही है औतनकाँपिकाँपिरहिजाय २२ को हितकारी है मातासम नाता बड़ा जगत केहिभाय ।