लिखी हकीकत सब आल्हाको सुनवाँ बारबार समुझाय ३५
नामी ठाकुर तुम मोहबे में हमरो ब्याह करो अब आय॥
नहिं मरिजायो जहर खायकै दूनों भाइ बनाफरराय ३६
लिखिकै पाती गल सुवनाके सुनवाँ तुरत दीन लटकाय॥
मूठी दीन्ह्यो फिरि कोठे ते सुवना चला मोहोबे जाय ३७
चन्दन बगिया सुवना पहुँच्यो तहँ पर रहैं उदयसिंहराय॥
चन्दन ऊपर सुवना बैठो परिगा दृष्टि तुरतही आय ३८
भल चुचकार्यो उदयसिंहने आपन नाम दीन बतलाय॥
सुवना बैठ्यो तब हाथेपर पाती छोरि लीन हर्षाय ३९
बांचिकै पाती तब ऊदन ने औ सय्यद को दीन सुनाय॥
सय्यद आल्हासों बतलायो मलखे देबै दीन बताय ४०
लैकै पाती औ सुवना को गे परिमाल कचहरी धाय॥
कही हकीकति सब राजा सों पाती दीन उदयसिंहराय ४१
पढ़िकै पाती को परिमालिक मनमाँ गये सनाकाखाय॥
होश उड़ान्यो परिमालिक का मुहँका बिरागयो कुम्हिनाय४२
बोलिन आवा परिमालिक सों औ द्वादालों लार सुखाय॥
थर थर थर थर देही काँपी शिरसों मुकुट गिरा भहराय ४३
रोम रोम सब ठाढ़े ह्वैगे नैनन बही आँसु की धार॥
धीरजधरिकै परिमालिक फिरि औ मलखे तन रहे निहारि ४४
मलखे बोले तब राजा ते साँचे बचन सुनो नरपाल॥
टीका पठयो है बेटी ने सोनहिंलौटिसकैक्यहुकाल ४५
सुनिकै बातैं मलखाने की बोले तुरत रजापरिमाल॥
न्याधि नशायो गढ़माड़ो की दूसरि ब्याधिभयोफिरिहाल ४६
टीका फेरो नयनागढ़ को मलखे मानो कही हमार॥
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आल्हाका बिवाह । १२१
