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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१३३

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आल्हखण्ड। १२८

सांगि उठाई फिरि रूपन ने राजै बार बार ललकार॥
लटुवा लाग्यो पूरन शिर में औ बहिचली रक्तकीधार ११६
अगल बगल के फिरि मारतभा दाँयें बाँयें दीन हटाय॥
एँड़ा मसके फिरि घोड़ा के फाटक तुरत पार ह्वैजाय ११७
गली गली में फिरि मारत भो औ बहिचली रक्तकी धार॥
घरी चारके फिरि अरसा में लश्कर आयगयोअसवार ११८
लाले रँग सों भीजे दीख्यो फागुन टेसू के अनुहार॥
पुँछी हकीकति तब मलखेने नाहर मोहबे के सरदार ११९
कैसी गुजरी नैनागढ़ में रूपन हाल देउ बतलाय॥
सुनिकै बातैं मलखाने की रूपन यथातथ्य गा गाय १२०
हल्ला ह्वैगा नैनागढ़माँ जहँतहँ कहनलागि सबकोय॥
ऐस बहादुर जहँके परजा तहँकेनृपतिकहौ कसहोयँ १२१
देखि तमाशा यहु बारी का राजा बार बार पछिताय॥
बड़ी हीनता हमरी ह्वैगै बारी जियतनिकरिगाहाय १२२
जोगा भोगा दोऊ लरिका बोले हाथ जोरि शिरनाय॥
हुकुम जो पावैं महराजा का सबकी कटा देयँ करवाय १२३
जितनी रॉड़ैं चढ़ि आई हैं सो बिनघाव एक ना जायँ॥
खेदिकै मारैं हम मोहबे लग टेटुवा टायर लयँ छिनाय १२४
सुनिकै नातैं ये लरिकन की राजै हुकुम दीन फरमाय॥
तुरत नगड़ची को बुलवायो तासोंबोल्योहुकुमसुनाय १२५
बजै नगाड़ा नैनागढ़ में सबियाँ फौज होय तय्यार॥
भोर भुरहरे पहफाटत खन मारों मुहबेके सरदार १२६
इतना कहिकै दूनों चलिभे अपने महल पहूँचे जाय॥
खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डागढ़ानिशाकोआय १२७