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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१३४

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आल्हाका विवाह। १२९

तारागण सब चमकन लागे सन्तन धुनी दीन परचाय॥
परे आलसी निजनिज खटिया घों घों कंठ रहे घर्राय १२८
माथ नवावों पितु अपने को जो नित मेरी करैं सहाय॥
करों तरंग यहाँ सों पूरण पूरण ब्रह्म रामको ध्याय १२९
आगे फौजै दूनों सजिहैं मचि हैं घोर शोर घमसान॥
जोगा भोगा के मुर्चापर लड़ि हैं खूब बीरमलखान १३०

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मज बाबूप्रयागना-
रायणजीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपँड़रीकलांनिवासिमिश्रवंशोद्भवबुध
कपाशंकरसनुपं॰ललिताप्रसादकृतबरातआगमनवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १॥

कवित्त॥

अंजली दिहेते रोग देहसों हटाय देत ध्यान के धरेते दुख दारिद दिखातना।
मानसों बिचारे मान राजैसों कराय देत नामके उचारे मुक्ति पदवी बिलातना॥
धारे उर व्रत काम क्रोधहू नशाय देत दीनदै पुकार करे खीन कुम्हिलातना।
बोरिदेत विघ्नन मिरोरि देत शत्रुमुख ललित करजोरे पाप रंचहू लखातना। १

सुमिरन॥


मारतण्ड मैं तुमको सुमिरों धरिकै चरणकमल में माथ॥
सूर्य्य भास्कर सविता रवि औ औरो नाम बहुत दिननाथ १
कथा पुराणन में पढ़िकै मैं जानों काश्यपेय महराज॥
जो कोउ आयो तब शरणागत गई न तासु कबों जगलाज २
तुम्हरे कुलमाँ रघुनन्दन मे बन्दनकरैं ललित तिनक्यार॥
अक्षत चन्दन औ फूलन सों मानस पूजन सदा हमार ३
तुम्ही सहाई हो दीनन के गाई सबै पुराणन गाथ॥
स्वई भरोसा धरि जियरेमाँ जावाचहौं नांघि भवपाथ ४
छूटि सुमिरनी गै देवन कै शाका सुनो शूरमन क्यार॥
जोगा भोगा दोऊ लड़िहैं लड़िहैं उदयसिंह सरदार ५