पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१३४

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भाल्दाका विवाह । १२६ तारागण सब चमकन लागे सन्तन धुनी दीन परचाय॥ परे आलसी निजनिज खटिया घों घों कंठ रहे घर्राय १२८ माथ नवावों पितु अपने को जो नित मेरी करें सहाय ।। करों तरंग यहाँ सों पूरण पूरण ब्रह्म रामको ध्याय १२६ आगे फौजै दूनों सजिहैं मचि हैं घोर शोर घमसान। जोगा भोगा के मुर्चापर लड़ि हैं खूब बीरमलखान१३० इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई ) मुंशीनवलकिशोरात्मज बाबूप्रयागना- रायणजीकी आज्ञानुसारउन्नाममदेशान्तर्गतपहरीकलांनिवासिमिश्रवंशोद्भवबुध कपाशंकरसनुपं०ललितामसादकृतवरातमागमनवर्णनोनाममथमस्तरंगः १॥ कवित्त॥ अंजली दिहेते रोग देहसों हटाय देत ध्यान के धरेते दुख दारिद दिखातना । मानसों विचारे मान राजैसों कराय देत नामके उचारे मुक्ति पदवी बिलातना ।। धारे उर व्रत काम क्रोधहू नशाय देत दीनदै पुकार करे खीन कुम्हिलातना । बोरिदेत विघ्नन मिरोरि देत शत्रुमुख ललित करजोरे पाप रंचहू लखातना ' सुमिरन । मारतण्ड में तुमको सुमिरों धरिक चरणकमल में माथ ।। सूर्य भास्कर सविता रवि औ औरो नाम बहुत दिननाथ १ कथा पुराणन में पढ़िक मैं जानों काश्यपेय महराज ॥ जो कोउ आयो तव शरणागत गई न तासु कबों जगलाज २ तुम्हरे कुलमाँ रघुनन्दन मे वन्दनकरें ललित तिनक्यार॥ अक्षत चन्दन औ फूलन सों मानस पूजन सदा हमार ३ तुम्ही सहाई हो दीनन के गाई सबै पुराणन गाथ। स्वई भरोसा धरि जियरेमाँ जावाचही नांघि भवपाथ छूटि सुमिरनी गै देवन के शाका सुनो शूरमन क्यार । जोगा भोगा दोऊ लड़िहँ लड़िहे उदयसिंह सरदार ५