पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१३५

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आल्हखण्ड। १२० अय कथामसंग ॥ उदय दिवाकर भे पूलमाँ किरणनकीनजगत उजियार॥ डंका बाज्यो नैनागढ़माँ सवियाँ 'फौज भई तय्यार ! वसैं वघेले औं चन्देले पाँवर सूखंश सरदार ॥ माड़वाड़ के क्षत्री साजे औ परिहार- गुटैयाचार २ हाड़ा वाले बूंदी वाले नौ रइठाउर लीन सजाय ।। तुरत निकुम्भन को सजवायो औ गौरन को लीन बुलाय ३ सजि गुहलैता औ कछवाये बहुतक चन्द्रवंश के ज्ञान॥ तोमर ठाकुर तुमवार के सजिगे मैनपुरी चवहान ' सजे भदावर वाले क्षत्री सजिगे गहिलवार सरदार ।। ॥ बैस डौंडियाखरे वाले वाले जिनके बांट परी तलवार ५ हवशी साजे औ दुर्शनी जे मनइन के करें अहार॥ कुरी छतीसों सब सजवाई ठाकुर सवै भये तय्यार ६ पूरन राजा पटनावाला सोऊ लीन दाल तलवार। जोगा भोगा दोनों ठाकुर अपने घोड़न में असवार ७ रणकी मोहरि बाजन लागी रणको होनलाग व्यवहार ॥ दादी करखा वोलन लागे विपन कीन वेद उच्चार मारु मारु के मौहरि वाजी वाजी हार हाव करनाल को गति बरणे तहँ क्षत्रिनकै एक ते एक दई के लाल हनु हंकारनि तो सजि गइँ जिनसों होय घोर घमसान ।। मारू डंका वाजन लागे घूमन लागे लाल निशान १ खर खर खर खर के रथ दोरे ख्वा चले पवन की चाल । एट पट खट पट तेगा घोलें मर मर होय गेंढकी दाल ११ धकधक धक कर महारत हाथी धकापेल चलिजायँ ।।