सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४
आल्हखण्ड। १३०

अथ कथाप्रसंग॥

उदय दिवाकर भे पूरबमाँ किरणनकीनजगत उजियार॥
डंका बाज्यो नैनागढ़माँ सवियाँ फौज भई तय्यार १
बसैं बघेले औं चन्देले पाँवर सूरबंश सरदार॥
माड़वाड़ के क्षत्री साजे औ परिहार गुटैयाचार २
हाड़ा वाले बूंदी वाले औ रइठाउर लीन सजाय॥
तुरत निकुम्भन को सजवायो औ गौरन को लीन बुलाय ३
सजि गुहलैता औ कछवाये बहुतक चन्द्रबंश के ज्वान॥
तोमर ठाकुर तुमवार के सजिगे मैनपुरी चवहान ४
सजे भदावर वाले क्षत्री सजिगे गहिलवार सरदार॥
बैस डौंडियाखरे वाले जिनके बांट परी तलवार ५
हवशी साजे औ दुर्रानी जे मनइन के करैं अहार॥
कुरी छतीसों सब सजवाई ठाकुर सबै भये तय्यार ६
पूरन राजा पटनावाला सोऊ लीन ढाल तलवार॥
जोगा भोगा दोनों ठाकुर अपने घोड़न में असवार ७
रणकी मौहरि बाजन लागी रणका होनलाग व्यवहार॥
दाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन बेद उच्चार ८
मारु मारु कै मौहरि बाजी बाजी हाव हाव करनाल॥
को गति बरणै तहँ क्षत्रिनकै एक ते एक दई के लाल ९
हनु हंकारनि तोपै सजि गइँ जिनसों होय घोर घमसान॥
मारू डंका बाजन लागे घूमन लागे लाल निशान १०
खर खर खर खर कै रथ दौरे रब्बा चले पवन की चाल॥
खट पट खट पट तेगा बोलैं मर मर होयँ गैंड़की ढ़ाल ११
धक धक धक धक करैं महावत हाथी धकापेल चलिजायँ॥