पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१३६

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आल्हाका विवाह । १३१ कोउ कोउ घोड़ा मोर चालपर कोउ कोउ सरपट रहे भगाय१२ कोउ कोउ घोड़ा हंस चालपर कोउ कोउ चले कदमपरजाय। कोउ कोउ घोड़ा ऐसे जा जिनकै टाप न परै सुनाय १३ कोउ कोउ घोड़ा कावा देखें कोउ कोउ गर्जि रहे असवार॥ कउँधालपकनिबिजुलीचमकनि चमचम चमाचम्म तलवार १४ घन घन घन घन घंग बाजें घूमत चलें मत्त- गजराज ॥ बल बल बल बल करें साँड़िया भागत चलें समर के काज१५ हिनहिन हिन हिन घोड़ाहीसे खीसे कायर देखि परान॥ छाय अँधेरिया गै पृथ्वी में गर्दा छाय गई असमान १६ देवता सकुचे आसमान में जंगल जीव गये थर्राय ॥ घरी चार के फिरि अर्सा में सेना अटी समर में आय १७ धूली दीख्यो आसमान में मलखे बोल्यो बचन सुनाय ॥ सजो बेंदुला के चढ़ेवया फौजै गईं उपर अब आय १८ सुनिक बातें मलखाने की ऊदन गरू दीन ललकार ॥ सजो सिपाही मोहवे वाले सबियाँ फौज होय तैयार १६ झीलम बखतर पहिरिसिपाहिन हाथ म लीन ढाल तलबार ।। सिरगा घोड़े की पीठीमाँ सय्यद तुरत भये असवार २० चढ़ो कबुतरी में मलखाने अपनी लिये ढाल तलवार ।। घोड़ मनोहर की पीठी माँ देवा चढ़त न लागी वार २१ बड़ि बड़ि तो अष्टधातु की सो चरखिन में दीन चढ़ाय ।। लै लै थैली बारूदन की सो तोपन में दई चलाय २२ बत्ती दइ दइ फिरि तोपन में रंजक तुरत दीन धरवाय ।। । बम्बके गोला छूटन लागे परलय जनो गई नगच्याय २३ । गोली ओला सम वर्पत भई भनभन भन्नभन्न भन्नाय ।। i