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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१३८

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आल्हाका बिवाह। १३३

देबी शारदा मइहरवाली मानों गईं भुजापर आय ३६
बाहू फरके बघऊदन के फौजन घुसा बनाफरराय॥
जैसे भेड़िन भेड़हा पैठै जैसे अहिर बिडारै गाय ३७
तैसे क्षत्री ऊदन देखैं भागैं तुरतै पीठि दिखाय॥
बड़ी लड़ाई मलखे कीन्हों अद्भुतसमर कहा ना जाय ३८
घोड़ मनोहर की पीठीपर देबा गरू करै ललकार॥
हनि हनि मारै रजपूतन को बहुतक जूझिगये सरदार ३९
अली अलामत औ दरियाखाँ बेटा जानबेग सुल्तान॥
ये सब लड़िका सय्यदवाले तहँपर करैं घोर घमसान ४०
मन्ना गूजर मोहबेवाला दोऊ हाथ करै तलवार॥
जोगा भोगा पूरन राजा येऊ करैं तहां पर मार ४१
जुझे सिपाही नैनागढ़ के लगभग एक लाखके ज्वान॥
पांच सहस मोहबे के जूझे करिकै समर भूमि मैदान ४२
जोगा बोला तब भोगा ते मानो कही हमारी बात॥
खबरि सुनावो महराजाको जैसी देखि परै कुशलात ४३
सुनिकै बातैं भोगा चलिभा नैनागढ़ै पहुंचा जाय॥
हाथ जोरिकै महराजा के भोगा यथातथ्य गा गाय ४४
सुनिकै बातैं महराजा ने लायो अमरढोल को जाय॥
सो दै दीन्ह्यो कर भोगा के भोगाचलिभाशीशनवाय ४५
आयकै पहुंच्यो समर भूमि में भोगा दीन्ह्यो ढोल बजाय॥
मुर्दा उठिकै जिन्दा ह्वैगे घैहा उठे तुरत हरषाय ४६
उठे सिपाही नैनागढ़ के मारैं खैंचि खैंचि तलवार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्तकी धार ४७
डारे मुर्दा हैं लोहुन में मानों कच्छ मच्छ उतरायँ॥