पगड़ी गिरिगइँ त्यहि लोहू में फूले कमल सरिसदर्शायँ ४८
परीं बँदूखैं कहुँ लोहू में काली नागिनिसी मन्नायँ॥
पांच कोसलों चली सिरोही लोथिन उपरलोथिदिखरायॅ ४९
बड़ी लड़ाई में नैनागढ़ मारा मारा परै सुनाय॥
कोऊ हारा नहिं काहू सों दोउरण परा बरोबरि आय ५०
जोगा ठाकुर नैनागढ़ का सय्यद बनरस का सरदार॥
भोगा देबाके मुर्चा माँ दोउ दिशिहोय बरोबरि मार ५१
मन्नागूजर पूरन राजा दोऊ करैं खूब तलवार॥
बड़े लड़ैया रणमाँ रहिगे कायर छांड़ि भागि हथियार ५२
अमरढोल कहुँ रणमाॅ बाजै गिरि उठि लड़ैं लड़ैताज्वान॥
देखि तमाशा ऊदन बोले दादा सुनो बीर मलखान ५३
मरिमरि जीवैं नैनागढ़ के मैंना दीख कबों असभाय॥
कावा दैकै ऊदन चलिमे नैनागढ़ै पहूंचे आय ५४
संध्या ह्वैगै ह्याँ लश्कर में तब फिरि मारु बंद ह्वैजाय॥
ऊदन पहुंचे ह्वाँ मालिन घर तुरतै मोहर दीन थँभाय ५५
खबरि सुनावो म्बरि भौजीका आयो मिलन उदयसिंहराय॥
सुनिकै बातैं मालिनि चलिभै सुनवैं खबरि सुनाई जाय ५६
सुनवॉ चलिमै तब महलन ते आई जहाँ लहुरवा भाय॥
पाग बैंजनी शिरपर बाँधे ऊदन कह्यो बचन मुसुकाय ५७
याही कारण चिठिया पठई जल्दी अवो लहुरवा भाय॥
जियत मोहोबे कोउ जाई ना डरिहौ बंश नाश करवाय ५८
मरे सिपाही क्यों जीवत हैं भौजी हाल देउ बतलाय॥
सुनिकै बातैं सुनवाँ बोली तुम सुनिलेउ लहुरवा भाय ५९
बरा बर्पलों मेरे बापने कीन्ह्यो कठिन तपस्या जाय॥
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आल्हखण्ड। १३४
