पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१३९

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आल्हखण्ड। १३४ पगड़ी गिरिगइँ त्यहि लोहू में फूले कमल सरिसदर्शाय ४८ परी बदूखें कहुँ लोहू में काली नागिनिसी मन्ना ।। पांच कोसलों चली सिरोही लोथिन उपरलोथिदिखराय४६ बड़ी लड़ाई में नैनागढ़ मारा मारा परै सुनाय ।। कोऊ हारा नहिं काहू सों दोउरण परा बरोबरि आय ५० जोगा ठाकुर नैनागढ़ का सय्यद बनरस का सरदार।। भोगा देवाके मुर्चा माँ दोउ दिशिहोय वरोबरि मार ५१ 'मन्नागूजर पूरन राजा दोऊ करें दोऊ करें खूब तलवार ॥ बड़े लडैया रणमाँ रहिगे कायर छाडि भागि हथियार ५२ अमरढोल कहुँ रणमा वाजै गिरि उठि लड़ें लडैताज्वान॥ देखि तमाशा ऊदन बोले दादा सुनो वीर मलखान ५३ मरिमरि जी नैनागढ़ के मैना दीख कबों असभाय । कावा दैक ऊदन चलिमे नैनागढ़े पहूंचे भाय ५१ संध्या द्वैगै ह्याँ लश्कर में तव फिरि मारु बंद द्वैजाय । ऊदन पहुंचे हाँ मालिन घर तुरते मोहर दीन भाय ५५ खबरि सुनावो म्बरि भौजीका आयो मिलन उदयसिंहराय ।। सुनिकै बातें मालिनि चलिभै सुन खबरि सुनाई जाय ५६ सुनवॉ चलिमै तब महलन ते आई जहाँ लहुरवा भाय॥ पाग बैंजनी शिरपर बाँधे ऊदन कह्यो बचन मुसुकाय ५७ याही कारण चिठिया पठई जल्दी अवो लहुरवा भाय। जियत मोहोबे कोउ जाई ना डरिहो वंश नाश करवाय ५६ मरे सिपाही क्यों जीवत हैं भौजी हाल देउ बतलाय॥ सुनिकै बातें सुनवाँ बोली तुम सुनिलेउ लहुरवा भाय बरा वर्पलों मेरे वापने कीन्हो कठिन तपस्या जाय।