पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१४

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६ संयोगिनिस्वयम्बर। लेके माला संयोगिनि तह घूमत फिरै सखिन के साथ ॥ . मन नहिं भावै कोउ राजा त्यहि जाको करै -आपनो नाथ ७६ देखें राजा संयोगिनि तहँ औ शिर नीचे लेय नवाय ॥ माला डालै नहिं काहू के क्षत्री गये सबै शर्माय ७७ सोतो देखें पृथीराज को नहिं तहँ देखि परें महराज ।। चकृत हुँकै चौगिर्दा ते देखनलागि छाडिकै लाज ७८ जब नहिं देख्यो दिल्लीपतिको तबमन सोचि सोचिरहिजाय॥ काह विधाता के मर्जी है जो नहिं अयो पिथौराराय ७६ कारी रहिवे हम दुनिया में , या फिरि ब्याहकरब तिनसाथ। त्यहिते तुमका हम ध्याइत है सुनिल्यो दीनबन्धु रघुनाथ८० जइस मनोरथ तुम सीताको पुरयो आप चराचर नाथ ।। तइस मनोरथ अब हमरो है न्याही जाय पिथौरा साथ २१ त्वही गोसइयाँ दीनबन्धु है भो दशस्थ के राजकुमार ।। बेगि मिलावो दिल्लीपति को तब सब हो काज हमार ८२ चरण तुम्हारे जो मनलावै गावै राम राम श्री राम ।। सो फल पावै मनभावै जो पूरण होय तासु के काम ८३ यह सुनि राखा हम, विप्रन ते ताको सत्य करो भगवान ।। मूरति दीख्यो फिरि कपड़ाकी तामें करनलागि अनुमान:४ है यह मूरति पृथीराजकी मनमाँ ठीक लीन ठहराय॥ लैकै माला संयोगिनि सो मूति गले दीन पहिराय ८५ देखि तमाशा सब राजा यह आशा छाँड़ि हृदयते दीन ॥ विदा मांगिकै महराजाते राजन गमन तहाँते कीन ८६ कूचके डंका बाजन लागे धूमन लागे लाल निशान ।। चलिमेराजा निज निज घरका करिकैशम्भुचरणको ध्यान८७