पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१४०

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जीवे तुरत आल्हाका बिवाह । १३५ भांगु मांगु तब इन्दर बोले बप्पा बोले माथ नवाय ६० अमरढोल जो हमको देवो तो सब काम सिद्ध लैजायँ ।। एवमस्तु तब इन्दर बोले बष्पा भवन पहूंचे आय ६१ जबहीं क्षत्री गिरें खेतमें अम्मरढोल देय बजवाय ।। कान भनक क्षत्रिन के परत बनाफरराय ६२ धोखे माडोके रहियो ना जहँ लैलियो बापका दायें । लड़े न जितिहाँ मेरे बापसों तुमको भेद देउँ बतलाय ६३ देवी पूजन कल मैं जैहौं । लेहौं अमरढोल मँगवाय॥ माली बनिकै तहँ तुम आयो लीन्ह्यो अम्भर ढोल चुराय ६४ इतना कहिकै सुनवाँ चलिभै अपने महल पहूंची आय ॥ ऊदन आये फिरि तम्बूको बैठे जहाँ बनाफरराय ६५ हाल बतायो मलखाने ते सोयो सबै रातिको पाय ।। भोर भुरहरे मुर्गा बोलत माली बने उदयसिंहराय ६६ जायकै पहुंचे तेहि मठियामाँ जहँपर सुनवाँ गई ‘बताय । घोड़ बेंदुला तहँ बांधा है मालिन बीच बनाफरराय ६७ फूल डिलैया माँ सोहैं भल सुन्दर हरवा रहे बनाय ।। सुनवाँ जागी ह्याँ महलन में बोली मातै वचन सुनाय ६८ राति सुपनवाँ यक मैं देखा माता तुम्हें देउँ बतलाय ।। संग सहेलिन देवी पूजें तहँपर अमरढोल अरराय ६९ त्यहिते मनमाँ यह आई है पूजन करों भवानी जाय । तुमसों माता यह विनवतिहों देवो अमरदोल मँगवाय ७० सुनिकै बातें रानी चलिमें पहुंची तुरत सेजपर जाय ।। हाल बतायो महराजा को लीन्ह्यो अमरढोल मँगवाय७१ सो दै दीन्हो लै बेटी को बेटी सखियन लीन वुलाय ।।