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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१४१

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आल्हखण्ड। १३६

चली भवानी फिरि पूजनको सुन्दरि गीतरहीं सब गाय ७२
जायकै पहुंचीं त्यहि मंदिरमाँ ज्यहिमाँ बसै दुर्गा माय॥
अक्षत चन्दन सों पूजन करि लौंगनहार दीन पहिराय ७३
शीश नवायो जगदम्बाका सुनवाँ फूलनहार चढ़ाय॥
भोग लगायो फिरि मेवा का सेवा अधिक कीन हरपाय ७४
किह्यो इशारा फिरि ऊदनको तुरतै लीन्ह्यो ढोल उठाय॥
कूदि बेंदुलापर चढ़ि बैठ्यो लशकर तुरतपहूंच्योआय ७५
कहाँ कहाँ कहि माली दौरे रहिगे जहाँ तहाँ शिरनाय॥
खबरि सुनाई नयपाली को सुनतै गयो सनाकाखाय ७६
जायकै पहुंच्यो तेहि मंदिर में जेहि में रहँ दुर्गा माय॥
तुरत पंडितन को बुलवायो जाने तंत्रशास्त्र अधिकाय ७७
इन्द्र यज्ञ नृपने तहँ ठानी स्वाहा स्वाहा परै सुनाय॥
एकसहसमन होम करायो गायो बेदमंत्र तहँ भाय ७८
हाथ जोरिकै बिनय सुनायो मानो सत्यबचन सुरराज॥
बारह बरसै जब तप कीन्ह्यों तबमोहिंढोलदियोमहराज ७९
जाति बनाफर की ओछी है तिनने चोरी लई कराय॥
सुनिकै बातैं ये राजा की भइ नभबाणि समयसुखदाय ८०
तुम्हरे उनके नहिं काहूघर रहि है ढोल सुनो नृपराय॥
इन्दर बोले फिरि देवन ते मानो बचन हमारे भाय ८१
आल्हा अम्मर हैं दुनिया में ते कस मरैं यहांपर आय॥
देवी शारदा का वरदानी आल्हा केर लहुरवा भाय ८२
लैकै ढोलक तुम तम्बू ते पटको तुस्त डांड़पर जाय॥
सुनिकै बातैं ये इन्दर की देवता तुरत चले शिरनाय ८३
लैकै ढोलक ते पटकत भे अपने धाम पहूंचे आय॥