पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१४६

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आल्हाका विवाह । १११ सुनिक बातें ये ऊदनकी तुरते बँचिलीन तलवार १३० ऐंचिकै मारा बघऊदनको ऊदन लीन दाल परवार ॥ ऊदन बोल्यो फिरि जोगाते तीसरि वार करो सरदार १३१ बँचि तड़ाका धनुही लीन्यो तामें दीन्यो तीर लगाय ।। ऐंचिकै मारा सो ऊदनके ऊदनलीन्ह्यो वार बचाय १३२ खैचि झड़ाका तलवारीको तुरतै हना उदयसिंहराय ।। मूड़ विसानी सो घोड़ेके बिन शिर परै रंड दिखराय १३३ कोतल घोड़ा जोगा बैठे “सायंकाल पहूंचा आय ।। मारुबन्दर्भ दोनों दलमाँ फौजै चलीं थलनको धाय १३४ चरि चरि गौवें घरका डगरी उड़ि उड़ि पक्षिन लीन बसेर ॥ तारागण सब चमकनलागे संतन रमा रामको टेर १३५ करों तरंग यहाँ सों पूरण तव पद सुमिरि भवानीकन्त ॥ रामरमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त १३६ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई, ई ) मुंशी नवलकिशोरात्मजवाबूमयागना- रायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतड़रीकलांनिवासिमिश्र वंशोद्भवबुधकृपाशङ्करसूनुपण्डितललिताप्रसादकृतऊदनविजय वर्णनोनामद्वितीयस्तरंगः २॥ सवैया॥ शेश महेश गणेश मनाय, सदा बरदान यही हम पावें। हाथगहे धनुबान सुजान, महान सदा ज्यहि वेद बतावें ॥ कोटिन जन्म जहां उपजै, रघुनन्दनके दिगही तहँ आवें। बरदान यही ललितेकर जान,सुजान सदा रघुनन्दन भावें ?