तम्बू गड़िगे महराजन के डेरा गड़े सिपाहिन केर॥
आल्हा ऊदन के डेरे ते योजन एक कोस के नेर ७
किश्ती नावै तिहि नदिया में तामें नचैं कंचनी नाच॥
आल्हा पकरै के कारण में ज्ञानिन युक्ति कीन यह साँच ८
दिखैं तमाशा तहँ नदिया में इत उत दोऊ दिशाके ज्वान॥
आल्हा ठाकुर त्यहि समया में तहँ पर करै गये असनान ९
होनी होवै सो सच होवै ज्ञानी ध्यानी को दिखलाय॥
कौन गुमानी अरमानी अस जानी मौत नहीं ज्यहिभाय १०
फिरि अभिमानी नर देही के नेही चरणशरण नहिंजायँ॥
बिना पियारे रघुनन्दन के चन्दन कौन परै दिखराय ११
बन्दन करिकै रघुनन्दन को आल्हा नदी अन्हाने जाय॥
चन्दन अक्षत सों पूजन करि प्रातःकृत्य कीन हर्षाय १२
मेला दीख्यो फिरि नदिया में दोउदिशि रहे नारि नर हेर॥
नावै किश्तिन के ऊपर में होवै नाच पतुरियन केर १३
दिखै तमाशा तहँ ठाढ़े भे ठाकुर मोहबे के सरदार॥
नावै आई अरिनन्दन की तिनमाँ होवै अधिक बहार १४
तहँ हरिकारा नैनागढ़ को बोला अरिनन्दन सों बात॥
नामी कुर मोहबे वाले आये आल्हा क्यरी बरात १५
सुनिकै बातैं हरिकारा की बोल्यो अरिनन्दन त्यहिकाल॥
रहै सगाई देशराज सों आल्हा बड़े पियारे बाल १६
अयो बरातै का तिनके हौ पैदल नाच दिखौ महिपाल॥
सुनिकै बातैं अरिनन्दन की बोले देशराज के लाल १७
कौनि सगाई देशराज सों साँचे हाल देव बतलाय॥
सुनिकै बातैं ये आल्हा की कहअरिनन्दनबचन सुनाय १८
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आल्हाका बिवाह। १४३
