पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१४८

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पाल्हाका विवाह । १४३ तम्बू गड़िगे महराजन के डेरा गड़े सिपाहिन केर ।। भाल्हा ऊदन के डेरे ते योजन एक कोस के नेर ७ किश्ती नावै तिहि नदिया में तामें नचैं कंचनी नाच ।। आल्हा पकर के कारण में ज्ञानिन युक्ति कीन यह साँच दिखें तमाशा तहँ नदिया में इत उत दोऊ दिशाके ज्वान। आल्हा ठाकुर त्यहि समया में तहँ पर करै गये असनान : होनी होवै सो सच होवे ज्ञानी ध्यानी को दिखलाय ।। कौन गुमानी अरमानी अस जानी मौत नहीं ज्यहिभाय १० फिरि अभिमानी नर देही के नेही चरणशरण नहिंजायँ ।। बिना पियारे रधुनन्दन के चन्दन कौन पर दिखराय ११ वन्दन करिके रघुनन्दन को आल्हा नदी अन्हाने जाय॥ चन्दन अक्षत सों पूजन करि प्रातःकृत्य कीन हर्षाय १२ मेला दीख्यो फिरि नदिया में दोउदिशि रहे नारि नरहेर ॥ नावै किश्तिन के ऊपर में होवै नाच पतुरियन केर १३ दिखे तमाशा तहँ गढ़े भे ठाकुर मोहबे के सरदार ।। नावै आई अरिनन्दन की तिनमाँ होवे अधिक बहार १४ तहँ हरिकारा नैनागढ़ को बोला अस्निन्दन सों बात ॥ . नामी कुर मोहबे वाले आये आल्हा क्यरी बरात १५ सुनिक बातें हरिकारा की बोल्योअरिनन्दनत्यहिकाल।। रहे सगाई देशराज़ सों आल्हा बड़े पियारे बाल १६ अयो बराते. का तिनके हौ पैदल नाच दिखौ महिपाल । मुनिकै बातें अरिनन्दन की बोले देशराज के लाल १७ कौनि सगाई देशराज सों साँचे हाल देव वतलाय ॥ सुनिके बातें ये आल्हा की कहअस्निन्दनबचन सुनाय१८