पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१५

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१० आल्हखण्ड। चदिक डोलामें संयोगिनि सोऊ चली महल को जाय ॥ उठि महराजा फिरिमहिफिलते औ दरवार पहूंचे आय ८८ मंत्री बैठत भो बाँयेंपर दहिने बठि विप्र सब जाय ।। त्यही समइया त्यहि औसर में राजा बोल्यो भुजा उठाय ८६ कौन पिथौरा को जानत है सन्मुख ठाढ़ होय सो आय ।। सुनिक वाते महराजाकी बूढो विप्र उठा हाय ६० हमसों परचय पृथीराजसों ओ महराज कनौजीराय ॥ पाँच बरस हम दिल्ली रहिक पूजाकीन तासु घर जाय ६१ . भोजन पाये त्यहि महलनमें बैठयन संग तासु महराज' पूँछन चाहो का महराजा सो तुम कहो आपनो काज६२ सुनिकै बातें त्यहि ब्राह्मण की बोला तुस्त कोजीराय ।। कस रजधानी है दिल्ली की कैसो वीर पिथोराराय ६३ सुनिक बातें ये जयचंद की बोला विप्र बहुत सुख पाय ॥ नाम हस्तिनापुर दिल्लीका जानो आपु कनौजीराय ६४ आगे राजा शन्तनु कैगे गंगा भई जासु की नारि।। तिनसुत भीषम फिरि पैदा मे कीन्ह्यो परशुराम सौ गरि ६५ दिन सत्ताइस का संगरभा दूनों तरफ चले तह तीर ॥ मूर्च्छित द्वैगे परशुराम जब गंगा आय छिनीक्यो नीर ६६ सनमुख द्वैगे फिरि दोऊ मिलि युद्धको होनलाग सामान ।। तब समुझायो बहु गंगाने अव नहिं करो युद्ध को ठान६७ तुम्हरो चेला यहु भीषम है ओ जमदग्नितनय बलवान।। नाम तुम्हारो जग में हैहै मानो सत्यवचन भगवान ६८ चेला जिनको अस बलवन्ता है भगवन्ता के अनुमान ॥ धन्य वखानों तिन गुरु केरी रहिहै सदा जगतमें मान ६६