पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१५१

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आल्हखण्ड । १४६ मलखे बोले फिरि आल्हाते लश्कर कूच देव करवाय॥ यह मन भाई तब आल्हा के डका तुरत दीन बजवाय ४३ हाथी सजिगा पचशब्दा तब आल्हा तुरत भयो असवार॥ हरनागर घोड़े के ऊपर मैने चढ़ा चंदेले क्यार ४४ घोड़ मनोहर देवा बैठा सिरगा बनरसका सरदार॥ सोहे कबुतरी पर मलखे भल ऊदन बेंदुलपर असवार ४५ मन्नाशूजर रूपन बारी दोऊ बेगि भये तय्यार ॥ झीलमबखतर पहिरिसिपाहिन हाथम लई ढाल तलवार ४६ कूचके डङ्गा वाजन लागे घूमन लागे लाल निशान ।। घोड़ी कबुतरी के ऊपरमाँ आगे फिर बीर मलखान ४७ खर खर खर खर के स्थ दारें हवा चलैं पवनकी चाल । मारु मारु के मौहरि वाजे बाजे हाच हाव करनाल ४८ इतते लश्कर गा आल्हाका जोगा उतै पहूंचा प्राय ॥ वम्बके गोला छूटन लागे हाहाकारी शब्द सुनाय ४६ जौने हाथी के गोला लागै मानों गिरा महल अरराय ।। जाने क्षत्री के गोला लागै साथै उड़ा चील्हनमजाय ५० जोने बछेड़ा के गोला लागै धुनकन रुईसरिस उडिजाय ॥ गोला लागे ज्यहि सँड़िया के सो मुहमरा गिरे अललाय ५१ जोने वैलके गोला लागे तरखर पात ऐस गिरिजाय॥ दुनो गोल आगे को बदिगे तोपन मारु बन्द द्वैजाय ५२ मारू दूबै मो मालाकी बलछी कड़ाबीन की मार ॥ चलें कटारी वृंदीवाली ऊना चले विलाइत क्यार ५३ कति कटि वत्री गि खेतमें उठि उठि रुण्ड करें तलवार। मदन करे मुड़चौरा मे औ रुण्डन के लगे पहार ५४