पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हाका विवाह । १४७ ३१ {दि लपेटा हाथी भिडिगे ऊपर करें महावत मार ॥ पैदर पैदर के बरनी में औ असवार साथ असवार ५५ जौने हौदा ऊदन ताके बेंडुल तहाँ पहूँचै जाय ॥ हनिकै मारै असवारे को औ हौदा ते देय गिराय ५६ अकसर ऊदन के मारुन में काहू धरा धीर ना जाय ।। पूरन राजा औ जगनाका परिगासमर बरोबरि आय ५७ मलखे जोगा का संगरहै भोगा बेदुल का असवार ।। बिजिया ठाकुर देवा ठाकुर दूनों खूब करें तलवार ५८ अपने अपने सब मुर्चन में क्षत्री नेक न मानें हार ॥ मलखे जोगा के मुर्चा में होवै कड़ाबीन की मार ५६ ऊदन भोगा के मुर्चा में कोताखानी चलै कटार ॥ विजिया देवा के मुर्चा में दोऊ हाथ चलै तलवार ६० को गति बरणै जगनायक की पूरन पटना को सरदार ।। मारु बरोबरि दोऊ करिके गरुई हाँक देय ललकार ६१ बड़ी लड़ाई भै नैनागढ़ नदिया बही रक्त की धार । वहीं लहासें तहँ क्षत्रिनकी पक्षी मानों ख्यलें नेवार ६२ जाँघ औ बाहू रजपूतन की तामें गोह सरिस उतरायँ । छुरी कटारी मछली मानों ढालें कछुवा सम दिखरायँ ६३ घोड़ा हीसे हाथी चिघरै ठाढ़े ऊंट तहाँ अललायें । वड़ बड़ राजा उमरायन को रणमास्यारकागमिलिखायँ ६४ जोगा ठाकुर के मुर्चापर गर्मीई हांक दीन मलखान ।। सँभरिके बैठो अब घोड़ापर कीअवलौटि जाव घरज्वान६५ सुनिक बातें मलखाने की तुरतै खेंचि लीन तलवार । ॥ ऐंचिकै मारा मलखाने को मलखे लीन दालपर वार ६६