पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१५३

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आल्हखण्ड। १४८ ढाल फाटिगै फाटिग गँडावाली रणमाँ इटि गिरी तलवार ।। उतरि कबुतरी ते मलखाने तुरतै बाँधि लीन सरदार ६७ बंधन द्वेगा जब जोगाका भोगा लीन्ह्यो सांग उठाय॥ ताकिकै मारा वघऊदन का ऊदन लीन्हो वार बचाय ६८ ऊदन बोले फिरि भोगाते ो विसिआने वात वनाय ॥ वार दूसरी अब तुम मार ठाकुर तोरि आहिरहिजाय ६९ बातें सुनिकै बघऊदन की भोगा भालालीन उठाय ॥ दूनों अंगुरिन भाला तौले कालीनाग ऐस मन्नाय ७० तारा टूटे आसमानते तो हिरगास भुई ना जाय। टिग भाला जो अँगुरिनते कम्मर मचा उनाका आय ७१ वचा दुलरुवा द्यावलिवाला आला देशराज को लाल ॥ भोगा गिरा तहाँ ततकाल ७२ भोगा बँधिगा रणखेतन में विजिया बड़ा लडैया ज्यान॥ अपने मुर्चा में सो हास्यो बांध्यो मैनपुरी चवहान ७३ पूरनराजा जगनायक का मुर्चापरा बरोबरि प्राय॥ जगना लीन्ह्यो वार बचाय ७४ ऍड़ा मसक्यो हरनागरके हाथी उपर पहुंचा जाय। संचिक मारा तलवारी को हाथी सुंदगिरी अरराय ७१ गिरामहावत तब मस्तकते हाथी बैटिगयो त्यहि ठायें । बंधन कीन्ह्यो फिरि पूरन को जीतिक डंका दिह्यो बजाय ७६ मग सिपाही नेनागद के काहू धराधीर ना जाय। बंधन देंगे चारिउ योधा . एकते एक बली अधिकाय ७० तहना गये सकल सरदार। मादिल बन्धन सबको दीम्यो घोड़ी तुरत भये असवार ७९ दालकि औझड़ ऊदनमारा गुर्ज चलायो पूरन राजा जना तम्बू रहे भाल्दाका