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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१६०

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आल्हाका बिवाह। १५५

उतरिकै पलकी ते सुनवाँफिरि महलन तुरत पहूंचीजाय १४९
मुहँ दिखलाई रानी मल्हना गलको दीन नौलखाहार॥
पायँ लागेकै सुनवाँ तहँपर करको कंकण दीन उतार १५०
बाजन बाजे चौगिर्दा ते घर घर भये मंगलाचार॥
फिरिपरिमालिक की ड्योढ़ीमाँ पहुंचे सबै शूर सरदार १५१
राजा पूंछैं मलखाने ते ओ बिरमा के राजकुमार॥
अमरढोल रहै नयपाली के कैसे किह्यो तहाँपर मार १५२
इतना सुनिकै मलखे बोले तुम सुनिलेउ रजापरिमाल॥
दया तुम्हारी जापर होवै ताकीबिजयहोयसबकाल १५३
हृदय लगायो सब कुँवरन को सबको कीन बड़ा सतकार॥
जीतिके डंका बाजन लागे नौबति झरै रजा के द्वार १५४
सौ सौ तोपैं दीगीं सलामीं चकरन पाई खूब इनाम॥
पिता हमारे किरपाशंकर कीन्हेनिसबैद्धिजनकेकाम९५५
माथ नवाबों पितु अपने को जिनबल पूरिकीन यह गाथ॥
मोर सहायी जग एकै हैं स्वामी अवधनाथ रघुनाथ १५६
आशिर्वाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय॥
सुखसों जीवो तुम दुनियामें दिनदिनहोउधनीअधिकाय १५७
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलौं रहैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तबलोंतुम यशसों रही सदाभरपूर १५८

इति श्रीलखनऊ निवासि (सी, आई, ई) मुंशी नवलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनारायणजीकी आज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गत पँड़रीकलां
निवासि मिश्रवंशोद्भवबुधकृपाशङ्करसनु पं॰ललिताप्रसाद कृत
आल्हापाणिग्रहणवर्णनोनाम तृतीयस्तरंगः ॥३॥

नैनागढ़आल्हाबिवाहसम्पूर्ण
इति॥