भोजन खावै हरिको ध्यावै साँचो ग्राहक दीन बताय ३
नाहक जग में कोउ पछतावै भाव नहीं दूसरो काज॥
देही आपनि गलि गलि जावै आबै फेरि जगत में लाज ४
छूटि सुमिरनी गै ह्याँते अब शाका सुनो शूरमन क्यार॥
ब्याह बखानों मलखाने का लड़िहैं बड़े बड़े सरदार ५
अथ कथाप्रसंग॥
यहु गजराजा पथरीगढ़ को ज्यहिको भरी लाग दरबार॥
बैठक बैठे सब क्षत्री हैं एकते एक शूर सरदार १
सुवा पहाड़ी कहुँ पिंजरन में महलन नाचिरहे कहुँ मोर॥
बैठि कबूतर कहुँ घुटकत हैं तीतर बोलिरहे कहुँ जोर २
घोड़ अगिनिया त्यहि राजाके साजा सबै विधाता काज॥
है गजमोतिनि त्यहिकी बेटी विद्या रूप शील शिरताज ३
सो नित खेलै सॅग सखियन में मेलै सदा गले में हाथ॥
सेमा भगतिनि की चेली है गुटवा ख्यलै सखिन के साथ ४
खेलत खेलत कछु सखियों ने कीन्ही तहाँ ब्याह की बात॥
कोउकोउ सखियाँ तहँ व्याहीथीं जानैं भलो श्वशुरपुर नात ५
ब्याही बोलैं अनव्याहिन सों सखियो सुनो हमारी बात॥
सुरपुर हरपुर हरिपुर नाहीं जो सुख मिले श्वशुरपुररात ६
सुनि सुनि बातैं ये ब्याहिनकी तहँ अनव्यहीमनैंअकुलायॅ॥
फिरिफिरिपूंछै तिन सखियनमा कासुखश्वशुरपुरैअधिकाय ७
बतियॉ घतियॉ जे बालम की छतियॉ छुवैं और अठिलायॅ॥
रनियॉ केरी सब बतियाँ को सखियॉ कहैं और हरपायॅ ८
सुरपुर हरपुर हरिपुर नाहीं जो सुखश्वशुरपुरैअधिकाय॥
सुनि सुनि बातैं ये व्याहिनकी मनमाँ गई बात ये छाय ९