पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१६५

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आल्हखण्ड । १६० व्याह विसेने के करिखे ना टीका तुरत दीन लौटाय ॥ सूरज चलिमे तहँ दिल्ली ते • कनउज फेरि पहूंचे आय २२ हैं कनवजिया जहँ वाम्हन बहु वड़ बड़ महल पर दिखराय॥ वेद पुराणन की चर्चा तहँ घरघरअधिक अधिकाय २३ सूरज पहुँचे जब ड्योढ़ी में बोला द्वारपाल शिरनाय । ॥ कौने राजाके लड़िकाही राजै खबरि देय पहुँचाय २४ बातें सुनिकै द्वारपाल की सूरज हाल दीन समुझाय॥ द्वारपाल सुनि गा राजा ढिग तुरतै खबरि सुनाई जाय २५ मुनिकै बातें दखानी की राजै हुकुम दीन फरमाय॥ द्वारपाल सूरज ढिग आयो लैकै सभा पहूँचा जाय २६ चिट्ठी दीन्यो तहँ सूरज ने जयचंद पढ़ा बहुत मनलाय॥ क्यहिका लड़िका घरभारू है पथरीगट्टै वियाहन जाय २७ घोड़ अगिनिया जिनकेघरमाँ ज्यहिके मारे फौज बिलाय ॥ तुरतें टीकाको लौटायो यहु महराज कनौजीराय २८ चलिमे सूरज तहँ कनउजे ते उरई फेरि पहूंचे आय ॥ पांचकोस मोहवे के आगे मार हिरन उदयसिंहराय २६ सूरज ऊदन यकमिल हगे दुनों कीन्ह्यो रामजुहार ।। ऊदन पूर्वे तहैं सूरज ते ठाकुर पथरी के सरदार ३० टीको ऐसो का लै गमन्यो नेगी संग तुम्हारे चार॥ सूरज बोलो तव अंदन ते ठाकुर बेंदुलके असवार ३१ निकरे हनवन हम गहा के साँचे हाल दीन बतलाय ॥ काह शिकारे तुम आयो है अकसर बने उदयसिंहराय ३२ मुनिकै चातें ये सूरज की बोला तुरत बनाफरराय । • किझो बहाना तुम सूरज है नेगी संग लियेहो भाय ३३