पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१६८

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मलखानका बिवाह । १६३ सखियाँ गावन मंगल लागी नेगिन झगर मचावा आय ॥ सोने चाँदी के गहना को सूरज सबै दीन पहिराय ५० ऊदन पहुँचे निज कमरामें डिब्बा लाये तुरत उठाय ।। खुब पहिरावा सब नेगिन को चारों खुशीभये अधिकाय ५६ बचा बचावा जो गहना रहै नेगिन स्वऊ दीन पकराय ॥ औरो नेगी जो पथरीगढ़ तिनको यही दियो पहिराय ६० ऊदन बोले फिरि नेगिनसे तुम गजराज दिह्यो समुझाय॥ माघ शुक्ल तेरसि की साइति. होई ब्याह तहांपर आय ६१ हाथ जोरिकै सूरज बोले आज्ञा देउ चंदेलोराय ॥ हम चलिजाबें पथरीगढ़ को राजै खबरि सुना जाय ६२ बातें सुनिकै ये सूरज की राजै हुकुम दीन फर्माय ॥ राम जुहार तुरत फिरिकरिके सूरज कूच दीन करवाय ६३ सौ सौ तो दगी सलामी पठवन चले लहुरवाभाय ।। बिदा माँगिक फिरि ऊदनसों अपने नेगी संगलिवाय ६४ सूरज चलिमे पथरीगढ़को माहिल कथा कहीं अब गाय॥ कहुँ सुधिपाई माहिल ठाकुर टीका चढ़ा मोहोबे जाय ६५ लिल्लीघोड़ी को मँगवायो तापर तुरत भयो असवार ।। सूरजतेनी आगे पहुँचा अकुर उरई का सरदार ६६ सजी कचहरी गजराजा की भारी लाग राज दरवार॥ झारि बिसेने सब बैठे हैं टिहुननधरे नाँगि तलवार ६७ माहिल पहुँचे त्यहि समया में राजै कीन्यो राम जुहार ।। चड़ी खातिरी राजे कीन्ह्यो वैग उरई का सरदार ६८ राजा बोले फिरि माहिलते नीके रहे खूब तुम भाय ।। माहिल बोले फिरि राजाते भइ अनहोनी कहीनाजाय ६६