चढ़ी जवानी पृथीराजकी पृथीराजकी कुश्ती लड़ै अखाड़े जायँ॥
खनखनठनठन भनभनमनमन कैसो शब्द कानमें जाय ११२
वाण चलावैं जहाँ तानिकै ताको तुरतै देयँ नशाय॥
ऐसे राजा पृथीराज हैं ओमहराज कनौजीराय ११३
सुनिकै बातैं त्यहि बाम्हन की फिरि ना बोल्यो चँदेलाराय॥
सभा विसर्जन करि जल्दी सों महलमें तुरत पहूँच्योजाय ११४
कियो बियारी फिरि मंदिर में सोयो रामचन्द्रको ध्याय॥
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडागड़ानिशाकोआय ११५
तारागण सब चमकन लागे पक्षिन चुप्पसाधि तब लीन॥
चलेआलसीखटिया तकितकि नाहकजन्म विधातै दीन ११६
आगे लड़ि हैं पृथइराज अब करि हैं घोर शोर घमसान॥
बैठो यारो अब थकिआयन मानो सत्यबचनपरमान ११७
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुँशीनवलकिशोरात्मजबाबूप्रयागनारायण
जीकीआज्ञानुसारउन्नायप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भव
बुधकृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृत संयोगिनि
स्वयम्बरोनामप्रथमस्तरंगः १ ॥
सवैया॥
भो शरणागतपाल कृपाल उदार अपार सबै गुण तेरे।
यांचि भयों शरणागत में न लह्यों अजहूं तुमको कहुँ हेरे॥
गावत संत महंत सबै कि हृदय विच रामरहैं सबे केरे।
सो नहिं टेरे सुनैं ललिते फलिते न भयेहैं मनोरथमेरे १
सुमिरन॥
बलेश्वरी पँड़री की गइये जिनकाविदितजगतपरताप॥
मन औ वाणी सों जो घ्यावै ताके छूटिजायँ सब ताप १