पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१७१

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आल्हखण्ड । १६६ बहू लय भावों त्वरि सेवा को माता बाग दियों लगवाय ॥ ऐसा कहिके मलखाने ने भाँवरि घुमी सातहू धाय ६४ पाँय लागि फिरि मल्हनाके द्यावलि चरणनशीशनवाय ॥ चरणन लाग्यो जब विरमा के मातालीन्यो हृदयलगाय ६५ पंजा फेखो फिरि मल्हना ने तुम्हरो बार न वाँका जाय ।। वैठि पालंकी मलखाने गे मनमें श्रीगणेशकोध्याय ६६ वाजन बाजे फिरि मोहबे माँ हाहाकारी शब्द सुनाय । हाथी सजिगा पचशब्दा तहँ आल्हा चढ़े रामकोध्याय ६७ हरनागर की फिरि पीठीमाँ ब्रह्मा फाँदि भये असवार॥ वीरशाह बौरी का राजा रूपन सिरउज का सरदार ६८ देवकुँवरि रानी के बालक पनउज केरे मदन गुपाल । ये सब क्षत्री चढ़ि घोड़नपर औरौ सजे बहुत नरपाल ६६ घोड़ मनोहर देवा बैठे सय्यद सिर्गापर असवार । सजा दुला का चढ़वया जो दिनरात करै तलवार १०० घोड़ी कबुतरी मलखाने की कोतल तुरत भई तय्यार ।। लक्खा गरी पँचकल्यानी हरियलमुश्कीघोड़अपार १०१ सुर्खा सब्जा सिर्गा सुरंगा ताजी तुरकी रंग बिरंग ।। कच्छी मच्छी काबुल वाले तिनकीकसीगईफिरि तंग १०२ डारि स्कावै गंगा यमुनी मुखमें दीन लगाम लगाय॥ परी हयकलें सब घोड़न के मेंहदी बूटा रहे बनाय १०३ नवल बछेड़ा सव साजेगे एकते एक रूप अधिकाय॥ हथी महावत हाथी लेके तिनपर हौदादये धराय १०४ हाथी सजिगे जब मोहवे में तोपै सबै भई तय्यार ।। पहिल नगाड़ामें जिनबन्दी दुसरे फाँदिभये असवार १०५ .