पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१७२

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मलखानका विवाह । १६७ तिमर नगाड़ाके वाजत खन क्षत्रिन कुच दीन करवाय ।। बाजे डंका अहतंका के बंका चले शूर समुदाय १०६ मारु मारुकै मौहरि बाजे बाजै हाव हाव करनाल। खर खर खर खर के रथ दौरे बाचले पवनकी चाल १०७ लक्ष पताका यकमिल द्वैगे नभमाँ गई लालरी छाय॥ धूरि उड़ानी हय टापन सों बाबा सूरज गये छिपाय १०८ व्याकुल कैकै पक्षी भागे जंगल जीव गये थर्राय ॥ चली बरातें मलखाने की हमरे बूत कहीं ना जाय १०६ सात रोजकी मैजलि करिकै पहुँचे तुरत धुरेपर आय ।। तम्बू गड़िगे महराजन के झंडा सरग फरहरा खायँ ११० सजिगा तम्बू तहँ आल्हा का भारी लाग खूब दरबार ।। चूड़ामाणि पण्डित तहँ आयों साइति लाग्योकरनविचार १११ साइति नीकी अब आई है ऐपनवारी देउ पठाय ।। हाथ जोरिक रूपन बोला नेगी कौन तहाँ को जाय ११२ हम नहिं जैहें पथरी गढ़को सांची सुनो बनाफरराय ।। बातें सुनिकै ये रूपन की बोलातुरत लहुरखा भाय ११३ घोड़ी कबुतरी दादावाली रूपन चढ़ो ताहिपर जाय । बानाराखे रजपूती का कैसे बने जनाना भाय ११४ सवैया।। प्राण न प्यार करें रणशूर कह ललिते हम सत्य विचारी। सोनकोधारि झमा झमकारि सो जातसदा पियसेजमें नारी ।। पाय निशा चमके तहँ नारि सो रारिकिये चमकै तलवारी। रारिकिये यश शरन होत सो कूरनकी अपकीरति भारी १६५ । 1