पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२ वनाय॥ भाल्हखण्ड । १६८- खुमिकै बातें ये उनकी रूपन बहुतगयो शर्माय । घोड़ी कबुनरी पर चढ़ि बैव्यो ऐपनवारी लीन उठाय ११६ माथ नायकै सब क्षत्रिन को मनियादेव हृदय सों ध्याय ।। चारिघरी के फिरि अरसा माँ फाटक उपर पहूंचा प्राय ११७ हुकुम दरै हुकुम दरै साहेबजादे वात कहाँते आये भी कह जैहै आपन काम देय बतलाय ११८ सुनिकै बातें दरखानी की बोला घोड़ी का असवार॥ नगर मोहोबा जगमें जाहिर नामी मोहबे के सरदार ११६ ब्याहन मलखे को आयन है मानो साची कही हमार ॥ ऐपनवारी बारी लायो बोलो ठादो राज दुवार १२० नेग आपने को झगरत है भारी नेग चहै कछुद्धार।। ॥ नेग आपनो का तुमचाहो बोलो घोड़ी के असवार १२१ घोड़ी जोड़ी लेके जाई डांड़े परे तासु भरि ॥ बोलु गरेि अब ऐसे ना दारे चहाँ चले तलवार १२२ मुनिक बात ये रूपन की चकृत द्वारपाल भा द्वार॥ फिरि २ देखें दिशि रूपन के फिरि २ लावै शोच बिचार१२३ ऐसो बारी हम देखा ना जैसो आयो आज दुवार।। ॥ सोचि समुझिके फिरिसोबोला बोलो घोड़े के असवार १२४ गरमी तुम्हरी अब कछु उतरी . बोलो नेग काह तुम द्वार। ॥ चार घरी भर चलै सिरोही दारे बहे रक्त की धार १२५ नेग हमारो यह साँचा है याँचा दार तुम्हारे आय ॥ जौन शमा हो पथरीगढ़ हमरो नेग देय चुकवाय १२६ ऐसे वैसे हम बारी ना मारी सदा शर दश पांच ।। खबरि सुनावै तू राजा का तेरी निकरिपरै कस कांव :२०