पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१७७

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आल्हखण्डा १७२ संग न देवे जो राजा का तो हनिमरे कादि तलवार ११ । ऐसे दीनन के मारे ते ऊदन जावे धर्म नशाय ॥ बड़ी कठिनता नर परिजावै औपरिजायं जानपर भाय १४ ' ललिते दशरथ त्यहिसमयामाँ प्राणै दीन धर्म पर आय॥ तैसे ऊदन कहा मानिकै धर्मे राखु दया पर आय १५ दया राखिकै इन नेगिन को सुखसों देव घरै पहुँचाय ।। बड़ी दीनना इन नेगिन की सवकर गये प्रापघट आय १५ ऊदन ऐसे केहरि सम्मुख लरिके कौन शूमाँ जाय॥ कियो बड़ाई बड़ भाई की आल्हा धर्म दीन समुझाय १७ ऊदन छाँड्यो तव नेगिन को नेगी घरै पहूंचे आय॥ हाल बतायो गजराजा को सुनतै गयो सनाकाखाय १८ लिल्ली घोड़ी पर चढ़ वैव्यो माहिल उरई को सरदार। जायकै पहुँच्यो झुनागढ़माँ जपिर मरी लाग दार १६ बड़ी खातिरी मै माहिल के राजा पास लीन बैठाय ।। माहिल बोले वहि समया में ओ महराजा बात बनाय २० शर्बत खन्दक में डारागा सबके कुशल भई यहि ठायें ॥ लड़े बनाफर ते जितिहाँ ना तुमते सत्य दीन बतलाय २१ भर चलि जावो यहि समयामें आल्हा निकट तुरत महराज ॥ हाथ जोरिक पाँयन परिके कीन्ह्योअवशिआपनोकाजर निर्वल भये छले सो काज॥ होय हँसौवा कन्या बेहे औ नहिं रहै जगतमें लाज २३ ऐसे समया में महराजा करिये कौन दूसरो साज॥ छली न वाजें हम दुनियाँ में औरहिनाय हमारी लाज २१ बल बल राजाका कम है कर्म न होय प्रजनकर भाय॥ बली भयेपर छल करिये ना