पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१७९

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आल्ह खण्ड । १७४ छल जो राखें तुम्हरे सँग में तो म्बहिं सजादेय भगवान३७ बातें सुनिक ये राजा की आल्हा कहा सुनो मलखान।। बैठि पालकी में अब जावो तुम्हरो भलो करें भगवान ३८ सुनिक बातें ये आल्हा की मलखे सुमिरि दुर्गामाय ॥ तुस्त पालकी में चदि बैठे महरन पलकी लीन उठाय ३६ चारि घरी के फिरि अर्सा में महलन तुरत पहूँचे आय॥ उतरि पालकी ते मलखाने मड़ये तरे “पहूँचे जाय १० फाटक बन्दी गजराजा करि क्षत्री सबै लीन बुलवाय॥ रीति विवाहे की जस चाही तैसे खंभ गड़ा तहँ भाय ४१ गाफिल दीस्यो मलखाने को बन्धन तुरत लीन करवाय॥ बाँधिकै खभा में मलखे को हरियर बांस लीन कटवाय ४२ मारन लागे मलखाने को जामा टूक टूक हैजाय॥ देखि तमाशा फुलियामालिनि महलन गई तड़ाका धाय ४३ खबरि सुनाई गजमोतिनि को जो कुछ कियो बिसेनेराय ॥ सुनि गजमोतिनि तहँ ते धाई कोठे उपर पहूंची आय ४१ नीचे दीख्यो त्यहि दुलहाको कङ्कण रहा हाथ दर्शाय .. तव गजराजा सोंगजमोतिनि बोली भारत वचन सुनाय ४५ कहाँ को बँधुवा यहु आयो है जो अति सह बाँस के घाय॥ तुरतै छाँडो यहि बँधुवा को मोसों विपतिदीखिनाजाय ४६ तब गजराजा कह बेटी सों खेलो सखिन साथ तुम जाय॥ पैसा मारयो यहि ठाकुर ने तासों सहै बाँसके घाय ४७ मलखे दील्यो तब कोठे को चारों नैन एक हैजायें । धरिकै दुमक्यो मलखाने ने खंभा उखरि गयो त्यहिठाय धन दीलेभे मलने के. खंभा लीन हाथ ता भाय॥