पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१८०

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मलखानका विवाह । १७५ लाग घुमावन तब खंभा को क्षत्री गये सनाकाखाय ४६ लात मारिके इक क्षत्री को ताकी लीन ढाल तलवार॥ मलखे ठाकुर के मारुन में आँगन बही रक्तकी धार ५० सिंह गरज्जनि मलखे गजें इत उत ह. बीर दश पांच ।। जितने कायर रहैं आँगन में देखत ढीलिहोइ तिन कांच ५१ फिरि फिरि मार औ ललकार नाहर समरधनी मलखान ।। लरिलरि गिरिगकितन्यो क्षत्री भारी लाग तहाँ खरिहान ५२ जैसे भेडिन भेड़हा पैठे जैसे अहिर विडारै गाय॥ तैसे मलखे के मुर्चा में कोउ रजपूत न रोंके पायँ ५३ सूरज ठाकुर तहँ पाछे सों कम्मरपकरिलीन फिरिश्राय ॥ बहुतक क्षत्री यकमिल द्वैक बन्धन फेरि लीन करवाय ५४ त्यलिया खंदक में गजराजा फिरि मलखे को दीन डराय ॥ हाल पायकै फुलिया मालिनि बेटी पास पहूंची जाय ५५ कही हकीकत सब मलखे की मालिनि बार बार तहँ गाय ।। सुनिसुनिबातें तहँ मालिनिकी बेटी बार बार पछिताय ५६ तुम्हें विधाता अस चहिये ना जैसी कीन हमारे साथ ।। बड़े दयालू औ बरदाता हमपर कृपाकरो रघुनाथ ५७ फिरि फिरिविनवै रघुनन्दनको धरिक भूमि आपनो माथ ।। कैसे देखें हम बालम को मालिनि फेरिकही यहगाथ५८ सुनिकै बातें गजमोतिनिकी मालिनिकही कथा समुझाय॥ दिवस बीतिगा इन बातन में संध्याकाल पहूंचा आय ५६ थार मँगायो तब चाँदी का भोजन सबै लीन धरवाय ॥ चाँदी केरे फिरि लोटा में निर्मल पानी लीन भराय ६० पाँच पान को चीरा लेके रेशम रस्सी लीन मँगाय ।।