पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१८५

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आल्हखण्ड। १८० तेगा धमकै बर्दवान के कोताखानी चलें कटार १॥ बड़ी लड़ाई भै झुन्नागढ़ अदन सूरज के मैदान । ॥ फिरि फिरि मारें औ ललकारें नाहर एक एक को जान ११० मानसिंह जगनिक को राजा देवा मैनपुरी चौहान ।। ॥ काँतामल औ बनरसवाला भारी कीन घोर घमसान १११ तीनि सिरोही सूरज मारी ऊदन लीन्ही वार बचाय ।। साँग उठाई वधऊदनने यो सूरजपर दई चलाय ११२ भागा घोड़ा तब सूरजको लश्कर भागि गयो भयखाय॥ जहां कचहरी गजराजाकी सूरज तहां पहूँचा जाय ११३ हाथ जोरि औ पायन परिकै राजै बहुत कहा समुझाय ॥ ॥ बड़े लडैया मोहवे वाले वाले तिनकीमारु सही नाजाय११४ मुनिक बातें ये सूरज की सेमा भगतिनि लीन बुलाय ।। कही हकीकति सब सेमाते राजा बार बार समुझाय ११५ सेमाभगतिनि सूरज लैकै तुरतै कूचदीन करवाय ॥ कूच कराये अन्नागढ़ ते पथरीगढ़े पहूँची आय ११६ दीख्यो ऊदन जब सूरज को धावा तुरत दीन करवाय॥ सेमा बरसी तब जादूको पत्थर सबै फौज लैजाय ११७ इकलो देवा बचि लश्करगा आल्हा पास पहूँचा आय॥ कही हकीकति सब सेमाकी आल्हागये सनाकाखाय ११८ धीरज धरिक आल्हा बोले देवा नगर मोहोवे जाय । ॥ जल्दी लावो तुम इन्दल को तासों कह्यो कथासमुझाय११६ इतना सुनिके देवाठाकुर अपने घोड़ भयो असवार ॥ सातरोज को धावा करिके पहुँचा नगर मोहोबा द्वार १२० आल्हा केरे फिरि मंदिर में देवा अटा तुरतही जाय॥