पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१८६

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मलखानका बिवाह । १८४ २५ कही हकीकति सब सुनवाँसों इन्दल फेरि पहूँचा आय १२१ इन्दल बोल्यो तहँ देवाते चाचा हाल देउ समुझाय ।। कैसी गुजरी पथरीगढ़ में कस तुम गयो इकेलेआय१२२ सुनिकै बातें ये इन्दल की देवा लीन दुःखकी श्वास ॥ सेमाभगतिनि पथरीगढ़ की त्यहिकरिडराबंशकीनाश १२३ तुम्हे जुलैबे को आये हैं बेटा चलो हमारे साथ ।। इतना सुनिकै इन्दल चलिमे देवी जाय नवायो माथ १२४ बड़ी अस्तुती की देवी की इन्दल तंत्रशास्त्र अनुसार ॥ अमृतसानी भइ मठवानी इन्दल आल्हा केर कुमार १२५ सवैया॥ बैठुमठी कछु देर कुमार अबार नहीं करिहउँ मैं काजा। या कहिके गय देबि तहाँ जहँ बैठ सुराधिप सोहत राजा।। जायविनै बहुभांति कियो सुरराज लख्यो तहँ देबिअकाजा। लेकर अमृत देतजबै ललिते मठिमें फिरि होत अवाजा १२६ छिपिकै चलिये त्यरेसाथ में इन्दल करो तयारी जाय ।। इतना सुनिकै इन्दल चलिमे देवी बार बार शिरनाय १२७ माता केरे फिरि मंदिर में इन्दल बिनय सुनाई आय ॥ आज्ञा पावें महतारी के दादा पास पहूँचें जायँ १२८ सुनवाँ बोली फिरि इन्दलते बेटा बार बार बलिजायँ ।। सेमा भगतिनि के देखको हमहूं चलब पूत तहँधाय १२६' बिस्मय कीन्ह्यो कळु मनमें ना पक्षीरूप धरी तव माय ॥ चूम्यो चाट्यो बदनलगायो पाछे हुकुम दियो फर्माय १३० आज्ञापितुकीसबकोउ कीन्यो राम औ परशुराम लों जानु । जल्दी जावो पितु दर्शन को बेटा कही हमारी मानु १३१