सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५
मलखानका बिवाह। १८१

कही हकीकति सब सुनवाँसों इन्दल फेरि पहूँचा आय १२१
इन्दल बोल्यो तहँ देबाते चाचा हाल देउ समुझाय॥
कैसी गुजरी पथरीगढ़ में कस तुम गयो इकेले आय१२२
सुनिकै बातैं ये इन्दल की देवा लीन दुःखकी श्वास॥
सेमाभगतिनि पथरीगढ़ की त्यहिकरिडराबंशकीनाश १२३
तुम्है बुलैबे को आये हैं बेटा चलौ हमारे साथ॥
इतना सुनिकै इन्दल चलिभे देबी जाय नवायो माथ १२४
बड़ी अस्तुती की देबी की इन्दल तंत्रशास्त्र अनुसार॥
अमृतसानी भइ मठबानी इन्दल आल्हा केर कुमार १२५

सवैया॥


बैठुमठी कछु देर कुमार अबार नहीं करिहउँ मैं काजा।
या कहिकै गय देबि तहाँ जहँ बैठ सुराधिप सोहत राजा॥
जायबिनै बहुभांति कियो सुरराज लख्यो तहँ देबिअकाजा।
लैकर अमृत देतजबै ललिते मठिमें फिरि होत अवाजा १२६



छिपिकै चलिये त्यरेसाथ में इन्दल करो तयारी जाय॥
इतना सुनिकै इन्दल चलिभे देबी बार बार शिरनाय १२७
माता केरे फिरि मंदिर में इन्दल बिनय सुनाई आय॥
आज्ञा पावैं महतारी कै दादा पास पहूँचैं जायँ १२८
सुनवाँ बोली फिरि इन्दलते बेटा बार बार बलिजायँ॥
सेमा भगतिनि के देखैको हमहूं चलब पूत तहँधाय १२९
बिस्मय कीन्ह्यो कछु मनमें ना पक्षीरूप धरी तब माय॥
चूम्यो चाट्यो बदनलगायो पाछे हुकुम दियो फर्माय १३०
आज्ञापितुकी सब कोउ कीन्ह्यो राम औ परशुराम लों जानु॥
जल्दी जावो पितु दर्शन को बेटा कही हमारी मानु १३१