इतना सुनिकै इन्दल चलिभे देबै तुरत जुहार्यो जाय॥
जल्दी चलिये अब दादा ढिग मातै हुकुमदीन फर्माय १३२
इतना सुनिकै देबा ठाकुर अपने घोड़ भयो असवार॥
घोड़ करिलिया इन्दल बैठे नाहर आल्हाकेर कुमार १३३
चील्ह रूप ह्वै सुनवाँ उडिगै आधे सरग रही मड़राय॥
देबी चलिकै फिरि मंदिरते पथरीगढ़ै पहूँचीजाय १३४
देबा इन्दल दोऊ नाहर आल्हा निकट पहूंचेजाय॥
आल्हा दीख्यो जबइन्दलको तबछातीसोंलियो लगाय १३५
आल्हा बोले फिरि इन्दल ते बेटा कही कथा ना जाय॥
सेमाभगतिनि के कर्तब ते पत्थर भईं फौज सब आय १३६
इन्दल बोले फिरि आल्हा ते अब नहिं देरकरो महराज॥
जल्दी चलिये अब झुन्नागढ़ चलिकैकरियआपनोकाज १३७
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर हाथी उपर भये असवार॥
घोड़ मनोहरकी पाठीपर ठाकुर मैनपुरी सरदार १३८
चढ़े करि लियाकी पीठीपर इन्दल कूचदीन करवाय॥
घड़ी अड़ाई के अरसा माँ पहुँचे समरभूमि में आय १३९
देखिकै फौजै तह पत्थर की इन्दल गयो सनाकाखाय॥
उतरिकै घोड़ा ते भुइँ आयो बोल्यो देबी शीश नवाय १४०
हेअविनाशिनिसबसुखराशिनि नाशिनिबिपतिकेरिसमुदाय॥
चरण शरण में हम तुम्हरी हैं फौजै देवो मातु जियाय १४१
तब तो देबी पथरीगढ़ में अमृत बूंद दीन बरसाय॥
अमृत बूंदी के परतैखन फौजैं उठीं तुरत हरषाय १४२
उठा बेंदुला का चढ़वैया इन्दल निकट पहूँचा आय॥
चूम्यो चाट्यो गरे लगायो पूंछन लाग बनाफरराय १४३
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आल्हखण्ड। १८२
