पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१८७

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आल्हखण्ड । १०२ इतना सुनिकै इन्दल चलिमे देव तुरत जुहारयो जाय। ॥ जल्दी चलिये अब दादा दिग मातै हुकुमदीन फर्माय १३२ इतना सुनिकै देवा ठाकुर अपने घोड़ भयो असवार ॥ घोड़ करिलिया इन्दल बैठे नाहर-आल्हाकेर कुमार १३३ चील्ह रूप द्वै सुनवाँ उडिगै प्राधे सरग रही मड़राय ॥ देवी चलिकै फिरि मंदिरते पथरीगढ़े पहूँचीजाय १३४ देवा इन्दल दोऊ नाहर आल्हा निकट पहूंचेजाय॥ आल्हा दीख्यो जबइन्दलको तबछातीसोलियो लगाय १३५ आल्हा बोले फिरि इन्दल ते बेटा कही कथा ना जाय ॥ सेमाभगतिनि के कर्तब ते. पत्थर भई फौज सब आय १३६ इन्दल बोले फिरि आल्हा ते अब नहिं देरकरो महराज ।। जल्दी चलिये अब मुन्नागढ़ चलिकैकरियआपनोकाज१३७ इतना सुनिकै आल्हा गकुर हाथी उपर भये असवार ।। घोड़ मनोहरकी पाठीपर ठाकुंर मैनपुरी सरदार १३० चढ़े करिलियाकी पीठीपर इन्दल कूचदीन करवाय ।। -घई-जड़ाई के असा माँ पहुँचे समरभूमि में आय १३६ देखिकै फौजै तह पत्थर की इन्दल गयो सनाकाखाय॥ उतरिक घोड़ा ते भुइँ ओयो बोल्यो देवी शीश नवाय १४० हेअविनाशिनिसवसुखराशिनि नाशिनिविपतिकेरिसमुदाय॥ चरण शरण में हम तुम्हरी हैं। फौजै देवो मातु जियाय १४१ तब तो देवी पथरीगढ़ में अमृत बूंद दीन बरसाय ।। अमृत बूंदी के परतखन फौज उठी तुरत हरषाय १४२ उठा वेंदुला का चढ़वैया इन्दल निकट पहूँचा आय॥ धम्यो चाट्यो गरे लगायो' पूंछन लाग बनाफरराय १४॥