पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१८९

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आल्हखण्ड । १८४ पांच कदम पर बरछी छूटें भालन तीन कदम पर मार ॥ कदम कदम पर चलें कटारी ऊनाचलै विलाइति क्यार१५६ तेगा धमकै बर्दवान के कटि कटि गिरें शूर सरदार॥ बड़ी लड़ाई दोउ दल कीन्ह्यो नदिया बही रक्तकी धार १५७ सूरज ऊदन फिरि दोऊ का परिगा समर बरोबरि आय॥ दोऊ मारें दोउ ललकारें दोऊ लेवें वार बचाय १५८ को गति वर] तहँ दोऊकै दोऊ समर धनी सरदार॥ बैस बरोवरि है दोऊ के दोऊ खूब करें तलवार १५६ यहु रणरंगी लै असि नंगी जंगी मैनपुरी चौहान ।। धरि धरि धमकै रजपूतन को देवा बड़ा लडैया ज्वान १६० को गति बरणे कंतामल की हंता क्षत्रिन को सरदार ॥ फिरि फिरि मारे औललकार दोऊ हाथ करै तलवार १६१ सिर्गा घोड़ा की पीठी पर सय्यद बनरस का सरदार ॥ अली अली कहि जैसी दौर भागें गली गलीसबयार १६२ भली भली कहि ऊदन वोलें कॉ थली थली सरदार। हली हली तहँ पृथ्वी डोले का डली डली लखिमार १६३ को गति वरणे तहँ सूरज की यहु गजराजा केर कुमार ।। खाँच सिरोही ली कम्मर सों ऊदन उपर हनी तलवार १६४ वार बचाई वघऊदन ने आपो दियो तड़ाका मार ॥ परी सिरोही सो घोड़ा के औशिरगिखोतुरतत्यहिवार१६५ उतरि बेंदुलाते सूरज को पकत्रो उदयसिंह सरदार ।। ॥ चांधिक मुशकै सूरजमलकी दुल उपर भयो असवार १६६ माँ ललकास्त्रो कतामल को क्षत्री घाटि विसेनेने जस कीन्यों तैसी सजा लेउ अवआय १६७ खबरदार लैजाय॥