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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९

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आल्हखण्ड।

देखन केरी अभिलाषा जो ओ महराज कनौजीराय ४
बूढ़े वाम्हन की बातैं सुनि लीन्ह्यो चन्दभाट बुलवाय॥
औसमुझायो फिरित्यहिकोसब यहु रणवाघु चँदेलोराय ५
सुनिकै बातैं चंदेले की चलिभो चन्दभाट शिरनाय॥
चढिकै घोड़ाकी पीठीमाँ दिल्ली शहर पहूंचा जाय ६
जायकै पहुँच्यो त्यहिफाटकमाँ जहँ दरवार पिथौरा क्यार॥
दीख पौंरिया चन्दभाट को गरूई हांक दीन ललकार ७
हुकुम दर्ररो हुकुम दर्ररो साहेबजादे बात बनाव॥
कहॉते आयो औ कहँ जैहौ जल्दी आपन नाम बताव ८
सुनिकै वातैं दरवानी की बोल्यो चन्दभाट ततकाल॥
देश हमारो कनउज जानो जावैं जहाँ बैठ नरपाल ९
मोहिं पठायो जयचँद राजा हमरो चन्दभाट है नाँउ॥
खवरि जनावो पृथुइराज को ओ दरवानी वात वनाउ १०
सुनिकै बातैं चन्दभाट की सो दर्बार सो दबार पहुंचा जाय॥
हाथ जोरिकै दोउ बोलतभा औ चरणनमें शीशनवाय ११
चन्दभाट कनउज ते आयो ओ महराज पिथौराराय॥
हुकुम जो पावों महराजा की तो मैं लावों साथ लिवाय १२
सुनिकै बातैं दरवानी की बोले पृथीराज महराज॥
लावो लावो त्यहि जल्दी सों आयोचन्दभाटक्यहिकाज १३
सुनिकै बातैं महराजा की दौरत चला पौंरिया जाय॥
सँग माँ लैकै चन्दभाट को औ दर्वार पहूंचा आय १४
चन्दभाट तब लखि पिरथी का दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
कह्यो सॅदेशा चन्देला जो सो पिरथीका दियो सुनाय १५
सुनि संदेशा चन्देले का भा मन खुशी पिथौराराय॥