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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९१

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आल्हखण्ड। १८६

धर्म क्षत्तिरी के सब पाले कीन्ह्यो रामचन्द्र जस काज ३
काव्य पुरानी बालमीकि की यहही ठीक ठाक परमान॥
याको देखै जब कोउ मानुष होवैं रामचन्द्र तब भान ४
भानै होतै त्यहि प्रानी के आनी मनो पुरबले भाग॥
भागै ह्वैकै सो जागै उर भागै सबै बिपति की आग ५
छूटि सुमिरनी गै ह्यांते अब शाका सुनो शूरमन केर॥
फौजे सजि हैं गजराजा की लड़ि हैं द्वऊ शूमा फेर ६

अथ कथाप्रसंग॥


खबरि पायकै गजराजाने सेमा भगतिनि लीन बुलाय॥
सेमा भगतिनि ते गजराजा सबियाँ कथा कह्यो समुझाय १
सुनिअकुलानी सेमाभगविनि राजै बार बार शिरनाय॥
आज्ञा देवो मोहिं जाने को मानो कही बिसेनेराय २
राजा बोले फिरि सेमाते आइव यही काज बुलवाय॥
अब तुम जावो पथरीगढ़ को मारो सबै मोहबिया जाय ३
आज्ञा पावत महराजा की सेमा अटी भवन में जाय॥
लैकै पुरिया सब जादू की तुरतै कूच दीन करवाय ४
तुरत पौंरिया को बुलवायो राजै हुकुम दीन फर्माय॥
तुरत नगड़ची को बुलवाओ डंका तुरत देव बजवाय ५
हुकुम पायकै महराजा को धावन अटा तुरतही जाय॥
बाजे डंका अहतंका के हाहाकारी शब्द सुनाय ६
जितनी फौजैं गजराजा की सबियाँ बेगि भईं तय्यार॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न भे असवार ७
घोड़ अगिनिया गजराजाको सोऊ सजा खड़ा तय्यार॥
सुमिरि भवानी जगदम्बा को राजा फाँदि भयो असवार ८