पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९१

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३. आल्हखण्ड । १८६ धर्म क्षत्तिरी के सब पाले कीन्ह्यो रामचन्द्र जस काज ३ काव्य पुरानी बालमीकि की यहही ठीक ठाक परमान॥ याको देखै जब कोड मानुष होवें रामचन्द्र तत्र भान भाने होते त्यहि पानी के आनी मनो पुरखले भाग। भागै बैंकै सो जागे उर भागै सबै विपति की आग ५ ष्टि सुमिरनी गै ह्यांते अब शाका सुनो शूरमन केर॥ फौजे सजि हैं गजराजा की लड़ि हैं दऊ शूमा फेर । अथ कयामसंग ॥ खबरि पायक गजराजाने सेमा भगतिनि लीन बुलाय॥ सेमा भगतिनि ते गजराजा सवियाँ कथा कह्यो समुझाय? सुनिअकुलानी सेमाभगविनि राजै बार बार शिरनाय ॥ आज्ञा देवो मोहिं जाने को मानो कही राजा बोले फिरि सेमाते आइव यही काज बुलवाय॥ भर तुम जावो पथरीगढ़ को मारो सबै मोहबिया जाय ३ आज्ञा पावत महराजा की सेमा अटी भवन में जाय॥ लेकै पुरिया सब जादू की तुस्तै कूच दीन करवाय तुरत पौरिया को बुलवायो राजे हुकुम दीन फर्माय॥ तुरत नगड़ची को बुलवाओ डंका तुरत देव बजवाय " हुकुम पायकै महराजा को धावन अटा तुरतही जाय॥ बाजे डंका अहतका के हाहाकारी शब्द मुनाय ६ जितनी फौज गजराजा की सवियाँ बेगि भई तय्यार॥ हथी चया हाथिन चदिगे बाँके घोड़न मे असवार घोड़ अगिनिया गजराजाको - सोऊ सजा खड़ा तय्यार ॥ समिरि भवानी जगदम्बा को राजा फाँदि भयो असवार कही विसेनेराय २