पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९२

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मलखानका विवाह । १८७ दादी करखा चोलन लागे विपन कीन वेद उचार॥ रणकी मोहरि पाजन लागी रणका होन-लाग व्यवहार है खर स्वर खर खर के रथ दौरे रवा चले पवन की चाल ।। मारु मारु करि मोहरि बाजी पाजी हाव हाव करनाल १० आगे हलका है हाथिन का पाछे चले जायँ असवार ।। पैदल क्षत्री त्यहि पाले सों हाथम लिये नाँगि तलवार ११ सुनि सुनि चौबे तहँ डका की बोला तुरत बनाफरराय ॥ चदिक आवत गजराजा है मानो कही शूर समुदाय १२ सुनिकै वात बघऊंदन की सँभले सबै शूर सरदार ।। घड़ी न बीती ना दिन गुजरा फौजै सबै भई तय्यार १३ दोऊ ओरते तो छूटीं मानो प्रलय मेघ घहरान ।। मारत मारत फिरि तोपन के संगम भये समर मैदान १४ ऊदन राजा सम्मुख हेगे राजा गरू दीन ललकार। मुशकै छोड़ो दउ पुत्रनकी ऊंदन मानो कही हमार १५ लड़िक बेटी तुम पैहो ना मरिक आन धरो अवतार । सुनिकै बात ये राजा की बोला उदयसिंह सरदार १६ घाटि बिसेने तुम कीन्ही है मलखे खन्दक दिये डराय । बेटी व्याहो औ फिरि जावो' नाहीं गई प्राणपर आय १७ काम विटेवन ते परिगा है कबहुँ न परा मर्द ते काम ॥ सम्मुख लड़िके उदयसिंह ते अबहीं जानवहत यमधाम १८ इतना सुनिके गजराजा ने आपनि ऐंचि लीन तलवार॥ हनिकै मारा बघऊदन को ऊदन लीन दालपर वार १६ फिरि ललकारा गजराजा को ठाकुर खबरदार । हैजाय । पहिली कीन्हे दूसरि कैले धत्री तोरि आहिरहिजाय २०