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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९३

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आल्हखण्ड। १८८

दूध लरिकई मा पाये ना तेरे मरे चढ़ै ना घाव॥
इतना सुनिकै गजराजा ने जल्दी हना दूसरा दाँव २१
वार बचाई बघऊदन ने राजा बहुत गयो शर्माय॥
उसरिन उसरिन द्वउ मारत भे शोभा कही बूत ना जाय २२
चिल्हिया बनिकै सेमाभगतिनि सुनवाँ पास पहुँची जाय॥
दोनों चिल्हिया संगम ह्वैकै पंजन परन लड़ैं नभधाय २३
इन्दल दीख्यो घोड़ा पर सों ऊपर आसमान की ओर॥
दोनों चिल्हिया आसमान में भारी करैं युद्ध अतिघोर २४
लड़िकै सटिकै संगम ह्वैकै दोऊ गिरीं धरणि में आय॥
सुनवाँ बोली तब इन्दल ते मारो पूत याहि असिघाय २५
इन्दल बोले तब सुनवाँ ते माता सत्य कहौं समुझाय॥
हाथ मिहिरियापर डारैं जो तो रजपूती धर्म नशाय २६
सुनवाँ बोली फिरि इन्दल ते बेटा बार बार बलिजायँ॥
जूरा काटो इह भगतिनि को तौ सबकाम सिद्धि ह्वैजायँ २७
सुनिकै बातैं ये माताकी जूरा काटि लीन त्यहिकाल॥
जादू झूठी भइँ सेमाकी सेमा परी बिपति के जाल २८
ज्यों त्यों करिकै झुन्नागढ़ को सेमाचली गई पछताय॥
मनै सराहै भल सुनवाँ को आपनलिह्योबदलह्याँआय २९
हवा चलाई जब पहिले मैं सुनवाँ बन्दकीन तब आय॥
अपने हाथे मैं विष बोयों बनिकैचील्हलडियुँजोजाय ३०
ह्याँ गजराना हल्ला करिकै अति खलभल्ला दीन मचाय॥
लड़ै इकल्ला सो घोड़ा पर कल्लादीन भूमि बिथराय ३१
पल्ला दैकै सय्यद ठाढ़े अल्लाऔबिसमिल्लागयेहिराय॥
जैसे होरी बल्ला छूटैं गल्ला यथा उसावा जाय ३२