पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९३

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32 आरहखण्ड।१८८ लरिकई मा पाये ना तेरे मरे चढ़े ना घाव ।। इतना सुनिक गजराजा ने जल्दी हना दूसरा दाँव २१ वार बचाई बघऊदन ने राजा बहुत गयो शर्माय ॥ उसरिन उसरिन दउ मारत भे शोभा कही बूत ना जाय २२ चिल्हिया बनिकै सेमाभगतिनि सुनवाँ पास पहुँची जाय ॥ दोनों चिल्हिया संगम द्वैकै पंजन परन लडै नभधाय २३ इन्दल दीख्यो घोड़ा पर सों ऊपर आसमान की ओर॥ दोनों चिल्हिया आसमान में भारी करें युद्ध अतिघोर २४ लड़िकै सटिकै संगम द्वैकै दोऊ गिरीं धरणि में आय॥ सुनवाँ बोली तब इन्दल ते मारो पूत याहि असिघाय २५ इन्दल बोले तब सुनवाँ ते माता सत्य कहाँ समुझाय॥ हाथ मिहिरियापर डार जो तो रजपूती धर्म नशाय २६ सुनवाँ बोली फिरि इन्दल ते बेटा बार बार बलिजाय ॥ जूरा काटो इह भगतिनि को तौ सवकाम सिद्धि लैजायँ २७ सुनिकै बातें ये माताकी जूरा काटि लीन त्यहिकाल॥ जादू झूठी भइँ सेमाकी सेमा परी बिपति के जाल २० ज्यों त्यों करिके मुन्नागढ़ को सेमाचली गई पछताय ॥ मनै सराहै भल सुनवाँ को आपनलियोबदलह्याँआय २९ हवा चलाई जब पहिले में सुनवाँ बन्दकीन तब आय॥ अपने हाथे मैं विष वोयों बनिकैचील्हलडियुजोजाय ३० याँ गजराना हल्ला करिके अति खलभल्ला दीन मचाया लड़े इकल्ला- सो घोड़ा पर कल्लादीन भूमि बिथराय ३१ पल्ला देकै सय्यद ठाढ़े अल्लाऔविसमिल्लागयेहिराय॥ बल्ला लूटै गला यथा उसावा जाय ३३ जैसे होरी