पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९४

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मलखानका विवाह । १८६ ३३ मारे मारे तलवारिन के तस गजराजा दीन बिछाय॥ फिरि फिरि मार औ ललकारै अद्भुतसमर कहा ना जाय ३३ सुनवाँ बोली फिरि इन्दल ते बेटा कहा मानि ले मोर ॥ पूंछ काटिले इह घोड़ाकी तौ नहिरहै फेरि श्रस जोर ३४ इतना सुनिकै इन्दल तुरतै घोड़ा पास पहुंचे जाय ॥ पूंछ काटिक वहि घोड़ा की औ धरती माँ दीन गिराय ३५ सेमाभगतिनि घोड़ अगिनियाँ दोऊ बिना जोर भे भाय ।। राजा सोच्यो अपने मनमाँ हमरो काल पहूँचा आय ३६ बोड़ि आसरा जिंदगानी का अपनो मया मोह विसराय ॥ प्राण गदोरी पर धरि लीन्यों आल्हा पास पहूँचा जाय ३७ औ ललकारा फिरि आल्हाको ठाकुर खबरदार खैजाय ॥ धोखे भूले ना माड़ो के जहँ लै लिये बापका दायँ ३८ मैं गजराजा झुन्नागढ़ को सम्मुख लड़ो आजु सरदार ॥ ऍड़ा मसके फिरि घोड़ा के आल्हा उपर हनी तलवार ३९ दूटि सिरोही गै राजाकै कबुजा रहा इकेलो हाथ ।। साँकरि लैकै फिरि हाथी को आल्हा दीन सुमिरिरघुनाथ ४० साँकरि फेरी पचशब्दा ने औ घोड़ाते दीन गिराय ।। बाँधिक मुशकै फिरि राजाकी आल्हा कूचदीन करवाय ४१ ऊदन बोले गजराजा सों म्वहिं मलखे को देउ बताय । राजा वोलो तब ऊदन सों मानो कही बनाफरराय ४२ संग हमारे अब तुम चलिये औ मलखे को लवें लिवाय।। इतना सुनिकै दूनों चलिमे खंदक पास पहूँचे जाय ४३ वज्रशिला को फिरि यरत मे रस्सा तुरत दीन लटकाय ।। बाहर निकरे मलखे ठाकुर रोवा बहुत लहुरवा भाय ४४