पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हखण्ड । १६. पकरिके बाहू दउ ऊदन की मलखे छाती लीन लगाय ।। तीनों चलिमे फिरि खन्दकसों आल्हा निकट पहूँचे आय ४५ राजा बोल्यो फिरि आल्हासों मानो कही बनाफरराय ।। कैदी छोड़ो दउ पुत्रन को अवहीं व्याह लेउ करवाय ४६ ऊदन बोले फिरि राजाते तुम्हरी कौन करै परतीति । गंगा करिक दादै लेकै घरमाँ किह्योजाय अनरीति ४७ दया आयगै फिरि आल्हाके गंगा फेरि लीन करवाय॥ कैद छुड़ायो दउ पुत्रन को पण्डित तुरते लीन बुलाय ५८ देखिपत्तरा पण्डित बोल्यो भाँवरि आजु लेउ करवाय ॥ इतना सुनिक राजा चलिभा दोऊ पुत्रन साथ लिवाय ४६ थाल्हा पहुंचे जनवासे में राजा महल पहूँचा जाय। लिल्ली घोड़ी माहिल चदिक राजा घरै गये फिरि धाय ५० बड़ी खातिरी राजा कीन्ह्यो माहिल बैंठि महल में जाय ॥ माहिल बोले फिरि राजाते मानो कही बिसेनेराय ५१ जितने गकुर भाल्हा घरके मड़येतरे लेउ बुलवाय॥ शूर कुरियन में बैठारो सबके मूडलेउ कटवाय ५२ इतना कहिके माहिल चलिमे पथरीगढ़े पहूँचे आय॥ किह्यो तयारी ह्याँ मड़ये की यहु गजराजा खंभ गड़ाय ५३ सूरज बेटा को बुलवायो तासों कह्यो हाल समुझाय॥ मुनिक बातें सब राजा की सूरज चलिभा शीशनवाय ५४ जायकै पहुँच्यो जनवासे में जहँ पर बैठि बनाफरगय॥ कयो हकीकति सवआल्हासों मूरज बार बार शिरनाय ५५ सुनिक बातें सब सूरज की आल्हा हुकुम दीन फर्माय॥ भई धेरैया सत्र मढ़ये को- यह कहिदियो विसेनेगय ५६